1.5 लाख कट्टे आयात इंदौर में खारक के करीब दो दर्जन थोक कारोबारी हैं। हर वर्ष पाकिस्तान से इंदौर में डेढ़ लाख बोरे (70 किलो प्रति बोरे) खारक आयात की जाती है। व्यापारियों की मानें तो यहां हर वर्ष करीब 70 करोड़ रुपए का कारोबार होता है। थोक व्यापारियों से शहरभर के खेरची व्यापारी खरीदते हैं। आयात शुल्क में कमी नहीं होने की संभावना से कई कारोबारी इसका व्यापार बंद करने का विचार कर रहे हैं।
अन्य प्रदेशों को होती है इंदौर से सप्लाय सेंट्रल इंडिया के अंतर्गत इंदौर में खारक का बड़ा कारोबार होता है। पाकिस्तान से माल यहां आने के बाद थोक व्यापारियों के माध्यम से पूरे मप्र के अलावा महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात और छत्तीसगढ़ में भी सप्लाय किया जाता है। फेरी वाले भी इसका व्यवसाय करते हैं। आयात में कमी से वे भी परेशान हैं और आपूर्ति कम होने से अन्य व्यवसाय के लिए मजबूर हो रहे हैं।
लालवानी से मिले कारोबारी चार महीने से संकट के दौर से गुजर रहे खारक कारोबारियों ने इस मुद्दे पर सांसद शंकर लालवानी से मुलाकात की। भाजपा व्यापारी प्रकोष्ठ के संतोष वाधवानी के साथ व्यापारियों ने उन्हें अपनी पीड़ा बताते हुए कहा, यह मुद्दा प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री तक पहुंचाकर विस्तार से चर्चा की जाना चाहिए। व्यापारियों के साथ आम जनता भी परेशान है। यदि आयात शुल्क में कुछ रियायत दी जाएगी तो सभी को फायदा मिलेगा। लालवानी ने सकारात्मक आश्वासन देते हुए प्रस्ताव बनाने की बात कही है।
– खारक सिर्फ पाकिस्तान में ही होने से वहीं से इसकी पूर्ति की जा सकती है। आयात शुल्क में १९५ प्रतिशत इजाफे से यहां कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। सर्दी में सबसे अधिक खपत होती है और दवा निर्माण में भी इसका प्रयोग होता है, इसलिए सरकार को आयात शुल्क में राहत देना चाहिए।
रमेश खंडेलवाल, अध्यक्ष, किराना मर्चेंट एसोसिएशन – आयात शुल्क बढ़ाने से खारक का कारोबार इंदौर में खत्म होने के कगार पर आ गया है। २०० प्रतिशत ड्यूटी चुकाकर व्यापार करना संभव नहीं है। सरकार पाकिस्तान से आने वाली अन्य वस्तुओं पर भले ही आयात शुल्क कम न करे, लेकिन खाने की वस्तुओं पर कम करे तो राहत मिलेगी। खारक दवा के लिए भी उपयोग होती है।
मनीष बिसानी, कारोबारी
– आयात ड्यूटी बढऩे से कीमतों में इजाफा हुआ है। इतनी ऊंची कीमतों पर खारक खरीदना मुश्किल होता है। सरकार आयात ड्यूटी में कुछ कमी करेगी तो कारोबार में सकारात्मक परिणाम दिखेंंगे। दिनेश आंचलिया, ड्रायफ्रूट्स व्यापारी