scriptLive Report : पूनम की सर्द रात, खूंखार तेंदुए के साथ! | Live Report : Poonam's chilly night with the dreaded leopard | Patrika News

Live Report : पूनम की सर्द रात, खूंखार तेंदुए के साथ!

locationइंदौरPublished: Nov 01, 2020 12:54:37 pm

Submitted by:

Mohit Panchal

ऑन द स्पॉट :पूरी रात डटे रहे रिपोर्टर व फोटो जर्नलिस्ट , जहां कल मादा तेंदुआ ने किया था जानवरों का शिकार- मादा झलक दिखाकर चली गई, वहीं तड़के पिंजरे में कैद हो गया शावक- वन विभाग ने बकरा खड़ा कर बिछाया था जाल

Live Report : पूनम की सर्द रात, खूंखार तेंदुए के साथ!

Live Report : पूनम की सर्द रात, खूंखार तेंदुए के साथ!

मोहित पांचाल

शरद पूर्णिमा की सर्द रात… उज्जैनी के पास पहाड़ी इलाका। नीचे खेतों में चारू चंद्र की चंचल किरणें अठखेलियां कर रहीं थीं। हमें इंतजार था, उस ‘सुंदरीÓ यानी मादा तेंदुआ का जो कल देर रात जंगलों को छोड़कर अपने दो शावकों के साथ एक किसान के खेत में घुस आई और अपने शिकार कौशल का प्रदर्शन करते हुए बकरी व मुर्गा-मुर्गी को निशाना बनाया था।
इसके बाद वन विभाग वालों ने वहां कैमरे तो लगाए ही, पिंजरा भी लगा दिया था कि उसको शावकों सहित गिरफ्त में लिया जा सके। जिस तरह वो घात लगाकर शिकार के लिए किसी जानवर पर झपटती है, ठीक वैसे ही घात लगाकर हम लोग भी उसी खेत में बनी पशुशाला की छत पर शाम ढलते ही बैठ गए। जहां से खेत-खलिहान, पहाड़ साफ-साफ नजर आ रहे थे। काफी देर तक कोई हरकत नहीं हुई तो हमने तय किया कि शायद उसे हमारी उपस्थिति का आभास हो गया है।
50 मीटर की दूरी पर पिंजरे में बकरा

ऐसे में हम छत से उतरकर खेत में एक किनारे कार में शीशे चढ़ाकर, दरवाजा लॉक कर बैठ गए… वन विभाग के पिंजरे से मात्र 50 मीटर की दूरी पर, कि आज उसका दीदार करना ही है। उधर पिंजरे में बकरा और इधर कार में हम आंखें फाड़े, टकटकी लगाए थे, उस ओर जहां से कल वह आई थी और जानवरों को चट कर गई थी। हमारा इंतजार व्यर्थ नहीं गया, रात के ग्यारह बजने को थे कि सरसराहट व खेतों में किसी जानवर के चलने की आहट से चौकन्ने हो गए।
शायद इसका आभास होते ही शाम से पिंजरे में मिमिया रहे बकरे की बोलती बंद हो गई, हम समझ गए कि वो आ गई। वो यहीं-कहीं आसपास है। हमारे रोंगटे खड़े हो गए। अनुमान सही निकला। वो दोनों शावकों के साथ दूर खड़ी थी, जैसे वहीं से टोह ले रही हो, कि आज का मीनू क्या है, किन-किनका शिकार करना है… हमने फटाफट कुछ फोटो क्लिक किए। वो उस वक्त तो बकरे रूपी ‘दानेÓ के पास नहीं आई। वहां से बच्चों सहित ओझल हो गई, जैसे मौका-मुआयना कर उसने सबकुछ भांप लिया हो। हम जमे रहे। रात परवान चढ़ती गई, तेज सर्द हवा पहाड़ी इलाके को जकड़ती गई।
आधी रात हो चुकी थी… नींद हमें घेरने लगी थी, लेकिन उसके लौटने की आस व उसके आसपास होने की धमक-चमक से आंखें बंद न हो पा रही थीं। पूनम की रात में पहाड़ी व खेत साफ-साफ नजर आ रहे थे। वहां चल रही हर हरकत पर हमारी नजर थी। सन्नाटा पसरा हुआ था। आसमान से बरस रहे अमृत यानी ओस की बूंदें कार पर जमने को थीं। गाड़ी बंद होने के बावजूद पूरी तरह से ठंडी हो चुकी थी। हमारी आंख लग गई, उधर पिंजरे में बंद बकरा भी शांत हो चुका था।
खट् से आई आवाज

समय गुजरता गया, कि तड़के 4.30 बजे के लगभग खट् से आवाज आई। बकरा जोर-जोर से चिल्ला रहा था, देखा तो पिंजरे में एक तेंदुआ था। अपनी मौत से साक्षात्कार होते देख बकरा पिंजरे में एक तरफ खड़ा होकर थर-थर कांप रहा था, लेकिन वो खुशकिस्मत रहा कि मौत सामने थी, लेकिन बच गया। हमने तुरंत वन विभाग वालों को सूचना दी। उन्होंने भी देरी न दिखाई। फुर्ती से टीम पहुंच गई और लेकर रवाना हो गई। हमने भी उस मादा तेंदुआ को न सही, उसके शावक को तो नजदीक से देख ही लिया। जो करीब सालभर का होगा, लेकिन उसके तेवर ऐसे कि अच्छे-खासे इंसान का शिकार कर ले।
बकरे की तो बंध गई थी जैसे घिग्घी

बकरे की तो जैसे घिग्घी बंध गई थी, तेंदुए को ले जाने के बाद भी उसके पैर थर्राना बंद नहीं हो रहे थे। एक और खुशकिस्मती रही, वह यह कि पिंजरे में आगे व पीछे दो दरवाजे होते हैं। जब तेंदुआ घुसा तो पिछला दरवाजा तो लॉक हो गया, लेकिन अगला लॉक नहीं हुआ। अगर तेंदुआ थोड़ा बहुत भी दरवाजे पर दस्तक देता तो वो खुल जाता। खैर, रात ढल चुकी थी, पूरब में लाली फैलने लगी थी। हम भी वहां से चल दिए। ये रात जिंदगीभर स्मरणीय रहेगी, इसे कोई भूल सकता है भला!
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