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कोई आएगा… मददगारों का जरूरतमदों को इंतजार

locationइंदौरPublished: Apr 25, 2020 11:15:56 am

Submitted by:

Manish Yadav

सड़क पर बर्तनों को रखकर करते है, भोजन-राशन की आस, सरकारी मदद मिल नहीं पा रही, समाजसेवियों का आसरा

कोई आएगा... मददगारों का जरूरतमदों को इंतजार

कोई आएगा… मददगारों का जरूरतमदों को इंतजार

मनीष यादव @ इंदौर।

कोरोना संक्रमण के चलते लगे कफ्र्यू के कारण अनेक लोग भोजन को लेकर परेशान है। प्रशासन और निगम गरीब-असहाय लोगो तक मुफ्त खाना पहुंचा रहा है। शहर के पश्चिम क्षेत्र में सड़कों पर रखे हुए बर्तन और झोले इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि अब भी कई इलाकों में मदद नहीं पहुंच पा रही। नतीजा यह कि वह लोग सड़क पर आकर किसी स्वयं सेवी संस्थान की मदद की आस में घंटों धूप में बैठे रहते हैं।
हम बात करें लालबाग के सामने स्थित सेठी नगर और अर्जुनपुरा की। यहां की महिलाएं और बच्चे रोजाना आरटीओ रोड पर अपने खाने के बर्तन और झोले रखकर बैठ जाते हैं। सोशल डिस्टेंस का पालन करने के लिए यहां पर बकायदा सड़क पर गोल घेरे भी बनाए गए हैं, जहां पर हर व्यक्ति अपने क्रम के हिसाब से बर्तन या दूसरा सामान रख देता है। ताकि उसका नंबर लगा रहे। इसके बाद सड़क पर बैठ कर वहां पर आने वाले मददगारों, स्वयंसेवी संस्थान के सदस्य का इंतजार किया जाता है। वे आकर खाना बांट जाते है। रहवासियों का कहना है कि निगम से मदद के लिए फोन किए गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। सीएम हेल्पलाइन पर भी शिकायत करने पर मदद नहीं मिल पाई। बाहरी इलाके में ही मदद मिल पाती हैं, इसलिए घर छोड़कर दोपहर में सड़क पर बैठ जाते हैं। अधिकतर लोग छोटा-मोटा काम किया करते थे, लेकिन लॉक डाउन के चलते हैं उनका काम बंद हो गया और वह अब आर्थिक परेशानी के चलते घर में राशन नहीं जुटा पा रहे हैं।
बरतन साफ करती थी, वहां से बन्द कर दिया
शोभा बाई ने बताया कि वह घरों में बर्तन साफ कर अपने परिवार का पालन पोषण किया करती थी, लेकिन कोरोना संक्रमण फैलने के साथ ही जहां पर वह काम करती थी उन्होंने उसे घर पर आने से मना कर दिया। इसके चलते अब उनके पास काम ही नहीं है। ऐसे में वह अपना पेट किस तरह भरे। दिए गए नम्बर अगर फोन लगाते हैं तो कोई उठाता ही नहीं है।
खाली बरतन लेकर लौट जाते है
प्रेम राव बताया कि सारे काम बंद हो गए हैं। सरकारी मदद नहीं मिल पाने के कारण व स्वयंसेवी संगठन और समाजसेवी के भरोसे ही हैं। मदद की आस में बर्तन लेकर चौराहे पर आते हैं अगर पुलिस आ जाए तो खाना बांटने वाले नहीं आते। चौराहे पर भीड़ लगाने पर पुलिस भी वहां से भगाती है। ऐसे में उन्हें खाली बर्तन लेकर ही वापस घरों की ओर लौटना पड़ता है। नहीं तो मार खाना पड़ती हैं।

एक ही बार मिली मदद
छाया के मुताबिक उन्हें एक बार निगम से मदद मिल पाई है। राशन खत्म हो गया है। एक्सीडेंट होने से पैर में लग गई थी। जब काम चल रहा था तब वह काम नहीं कर पाए। इसके चलते उनके आर्थिक स्थिती काफी बदतर हो गए। वह रोजाना सड़क पर मदद की आस में खड़े रहते हैं और सड़क से निकलने वाली गाड़ी में कोई भी स्वयंसेवी उनकी मदद कर देता है। इस तरह उनका जीवन यापन चल रहा है।
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