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मालवा की जनता का सबक: सियासत की अफीम पर चोट, रोजगार की आस में वोट

locationइंदौरPublished: Jul 21, 2022 10:22:32 am

नगरीय निकाय चुनाव: वोटर ने सूबे के हर इलाके से दिया सियासी सबक
जानें इस चुनाव में आपके क्षेत्र की जनता ने दिया कौन सा सबक

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गोंविद ठाकरे/नितिन चावड़ा

मध्यप्रदेश में हुए नगरीय निकायों के चुनावों में हुए वादों और दावों के नतीजे अब सबके सामने हैं… किसी के गले में जीत का ‘हार’ आया तो किसी के चिंतन में… दावे और वादे अब भी हो रहे हैं… इन सबके बीच मध्यप्रदेश में नई स्थानीय सरकारें आकार ले रही हैं… गांव से लेकर कस्बों और शहरों तक आकार ले रही हैं जनता की उम्मीदें भी… इन आशाओं पर खरे उतरकर ही राजनीतिक दल विधानसभा चुनाव में अपने नैया पार लगा सकेंगे… बहरहाल हम विश्लेषण कर बता रहे हैं कि इन चुनावों से किसे क्या सबक मिला… कौन कहां मजबूत रहा और कहां कमजोर…

ऐसे समझें मालवा का सियासी सबक
ज्वालामुखी के लावे से निर्मित मालवा की सियासत की गर्माहट से प्रदेश की राजनीति में अक्सर हलचल रहती है। संघ के इस गढ़ में भाजपा ने फिर परचम लहराया है। इंदौर, देवास, उज्जैन और रतलाम चारों नगर निगम की महापौर सीट और परिषद में भाजपा ने कब्जा जमाया।

10 नगर पालिका में सात पर भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ गढ़ बचाने में कामयाब रही। वहीं एक कांग्रेस के खाते में तो दो में बहुमत को लेकर खींचतान है। ग्रामीण क्षेत्रों में शाजापुर के मक्सी में कांग्रेस का 32 साल पुराना किला ढहाने में भाजपा सफल रही।
जाहिर है बगावत, बारिश और कम वोटिंग के बावजूद मालवा में कमल को खुलकर खिलखिलाने मौका मिला है। इस चुनाव ने कई नए सबक दिए हैं। सियासत की अफीम को पालने-पोसने वाले पैरोकारों के लिए बड़ा झटका और कड़ा संदेश साबित हुए हैं। इंदौर में गैंगस्टर की पत्नी को टिकट दिलाने की कोशिश हो या एक वार्ड में खुलेआम गुंडागर्दी जैसे दुर्भाग्यपूर्ण वाकये से पार्टी की किरकिरी हुई।
स्पष्ट संदेश यह भी कि माफिया और गुंडों को संरक्षण देने से बाज आएं। हालांकि कांग्रेस ने मजबूती से चुनाव लड़ा, लेकिन आशातीत सफलता नहीं मिली। उनकी विधायक को महापौर के लिए मैदान में उतारने की रणनीति भी इंदौर-उज्जैन में नाकाम रही। आगर और शाजापुर में आम आदमी पार्टी ने आमद दर्ज कराई है। यह मालवा में नई राजनीति का आरं भिक संकेत हो सकता है।

भाजपा का नए चेहरे का गणित यहां काम कर गया। सनद रहे कि जनता ने युवा जोश पर ज्यादा भरोसा जताया है। स्थानीय विकास की प्राथमिकता में रोजगार को केंद्र में रखा है। जीत का मार्जिन बड़ा होना यही दर्शाता है। मालवा में जहां भाजपा संगठन और क्षत्रपों का रुतबा बढ़ा, वहीं कांग्रेस के स्टार प्रचारकों को छोड़ दें तो स्थानीय नेताओं की जमीन खिसकी है। तमाम कोशिशों के बावजूद वोटिंग प्रतिशत हर बार गिरना लोकतंत्र की सेहत के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। इसमें पार्टियां जो दावे करती हैं उन पर खरे नहीं उतरने की निराशा ज्यादा झलकती है।

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