आदरणीय भिसे जी, आपके आग्रह पर-आपके निवेदन पर मैं आज (शुक्रवार) शाम को समय से पूर्व रवींद्र नाट्यगृह पहुंचा। साढ़े सात-पौने आठ बजे तक अकेले बैठे रहा। फिर थोड़ी चहलकदमी के लिए बाहर निकला। तब मंत्राणी महोदय पधारीं। उनके साथ उनके तमाम लोग (लग्गु-भग्गू) आए। भीड़ थी, मैं पहुंचा तो आखिर में एक कुर्सी बाकी बची थी। वहां बैठने लगा तो उनके (मंत्री के) पीए ने हटा दिया और किसी और को बैठा दिया। अपमानित होकर, बहुत बेइज्जत होकर तेरे कूचे से हम निकले। मैं वापस घर आ गया हूं। आपने जो सम्मान दिया, उसके लिए शुक्रिया।
सोचने की बात तो यह है कि सरकार के कार्यक्रमों में सभी आर्टिस्ट को निमंत्रण तक नहीं मिलता है। इन सबसे इतर वरिष्ठों का तो सम्मान करना चाहिए। गुरुकुल सभ्यता में गुरु का कितना महत्व है, यह समझना चाहिए। कम से कम किसी की उम्र का लिहाज तो रखिए। बैठे हुए अतिथि को उठाना बहुत गलत बात है। यह आपकी संस्कृति और संस्कार के स्याह पहलू को दिखाता है।
– आशीष पिल्लई, कथक नर्तक
– दमयंती भाटिया, कथक नृत्यांगना
जयंत माधव भिसे, निदेशक, संगीत एवं कला अकादमी
– तुष दाधीच, पुरु दाधीच के पुत्र