मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इतनी अच्छी छवि होने के बावजूद चंद सीटों की वजह से भाजपा चौथी बार सत्ता में नहीं आ पाई। संघ और पार्टी हलकों में हार की अलग-अलग स्तर पर समीक्षा की जा रही है। इसमें एक बड़ी वजह संगठन की कमजोरी भी सामने आई है।
प्रदेश के संगठन महामंत्री सुहास भगत अपनी भूमिका निभाने में कमजोर साबित हुए। यहां तक कि उज्जैन व विंध्य के संगठन मंत्रियों को छोड़कर सभी कमजोर साबित हुए। सच्चाई ये है कि सभी ने चुनाव को बहुत ही हलके में लिया, जिसकी वजह से ये परिणाम सामने आए।
बताते हैं कि टिकट वितरण के बाद में होने वाले बवाल को भी भगत ने गंभीरता से नहीं लिया। पहली बार २५ से अधिक सीटों पर भाजपा के बागियों ने चुनाव लड़ा। उसके अलावा भीतरघात करने वालों को खुली छूट दी गई और न उन्हें रोका गया ना टोका गया।
पिछले चुनाव में संगठन की कमान अरविंद मेनन के हाथ में थी। उन्हें मालूम था कि कौन सी विधानसभा में कितने दावेदार हैं। वे पहले से उन दावेदारों की घेराबंदी करना शुरू कर देते थे। उन्हें अगली बार या अन्य जगहों पर उपकृत करने का आश्वासन देकर काम पर लगा देते थे। उन्हें मालूम रहता था कि कौन सा नाराज किसकी बात मानेगा। उस नेता को तुरंत काम पर लगा देते थे।
इस बार चुनाव में ऐसा कुछ नहीं हुआ। भगत ने चुनाव का अधिकांश समय भोपाल के दीनदयाल भवन में ही निकाल दिया। उनके संभागीय संगठन मंत्रियों ने भी प्रत्याशियों का बेसहारा छोड़ दिया। यही वजह थी कि भाजपा की फजीहत हो गई। खुलकर भीतरघात हुई, जिस पर न तो रोक थी न टोक थी।
मंडल स्तर पर थी मजबूत पकड़ इंदौर के जिला संगठन मंत्री से शुरुआत करने वाले अरविंद मेनन बाद में संभागीय संगठन मंत्री बने, फिर प्रदेश के सह संगठन मंत्री होते हुए प्रदेश के संगठन महामंत्री बने। उनकी पकड़ प्रदेश के ५६ जिलों के ३०० से अधिक मंडलों पर थी। कई मंडल अध्यक्षों को तो वे सीधे नाम से जानते थे। उनके परिचय का दायरा लगातार प्रवास की वजह से बढ़ा, लेकिन भगत ने डेढ़-दो साल में आम कार्यकर्ता तो दूर जवाबदारों से मुलाकात करना मुनासिब नहीं समझा।
मोबाइल से नहीं हटते, किसे बताते पीड़ा प्रदेश भाजपा के एक जवाबदार पदाधिकारी के मुताबिक संगठन महामंत्री भगत को मोबाइल से ही फुर्सत नहीं मिलती है। गंभीर मुद्दों पर बात करने के लिए पहुंचते हैं तो वे फेसबुक और वाट्सएप को ही देखते रहते हैं। बातों पर ध्यान नहीं देते। ऐसे में नेताओं ने भी उन्हें अपनी पीड़ा और जमीनी हकीकत बताना बंद कर दी, जिसके परिणाम स्वरूप आज भाजपा विपक्ष में बैठी है।