इंदौरPublished: Oct 17, 2023 07:53:39 am
Ashtha Awasthi
इंदौर। लगभग 40 साल पहले मेरी पोस्टिंग भाभरा (वर्तमान में चंद्रशेखर आजाद नगर) में थी। विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर गांव में ड्यूटी लगी। उस समय दो दिन पहले ही स्थल पर पेटी और बैलेट पेपर के साथ कर्मचारियों को पहुंचा दिया जाता था। हम तीन कर्मचारी चुनाव ड्यूटी के लिए रवाना हुए। गांव के कोटवार को स्पेशल पुलिस अधिकारी बनाकर हमारे साथ भेजा गया। गांव पहुंचकर मतदान केंद्र के पास ही के कक्ष में हम रुके। आदिवासी इलाका होने से शाम को ही पूरा क्षेत्र सुनसान हो गया।
रात को गांव में किसी की बकरी चोरी हो गई और लड़ाई-झगड़ा भी शुरू हो गया। भीड़ स्कूल की तरफ बढ़ी। इसमें हमारा स्पेशल पुलिस अधिकारी बना कोटवार सबसे आगे नजर आया। वह नशे में था और कुछ बोले बगैर ही तीर कमान हमारे ऊपर तान दिए। हमने घबराकर बैलेट पेपर व पेटी सुरक्षित करने के लिए कमरा बंद कर लिया। कुछ देर के बाद वे लोग चले गए। उस समय हमारे पास पुलिस या अधिकारियों से संपर्क करने के लिए कोई साधन नहीं था। रात लगभग 1 बजे झोनल अधिकारी आए तब उन्हें पूरी घटना बताई। वे कोटवार को अपने साथ ले गए और रात 3 बजे पुलिस भेजी। इसके बाद सुबह हमने शांतिपूर्ण तरीके से मतदान कराया। यह अनुभव रिटायर्ड कर्मचारी नंदकिशोर उपाध्याय (76 वर्षीय) ने सुनाए।