भ्रष्टाचार के मामलों में चालान की अनुमति नहीं मिलने से लोकायुक्त की कार्रवाई कई बार अटक जाती है। पीडब्ल्यूडी के मामले में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। जनवरी 2016 में लोकायुक्त की टीम ने गुना के ठेकेदार की शिकायत पर रेसीडेंसी कोठी में 30 हजार रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में प्रभारी ईई बीके माथुर को पकड़ा था। ठेकेदार ने सडक़ निर्माण के लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) बनाई थी। आरोप था, अफसर प्रोजेक्ट मंजूर नहीं कर रहे हैं, जिससे ठेकेदार फर्म का करीब 1.70 लाख रुपए का भुगतान रुका हुआ था। ठेकेदार ब्रजेश सोनी का आरोप था, उससे 50 हजार रुपए रिश्वत मांगी जा रही थी। 30 हजार रुपए की रिश्वत लेते पकड़े जाने के दौरान माथुर ने भागने का प्रयास भी किया था। जांच के दौरान सबइंजीनियर विजय दुबे की भी मामले में भूमिका सामने आने के बाद 4 फरवरी को उन्हें भी गिरफ्तार कर आरोपित बनाया था। लोकायुक्त ने जांच पूरी कर काफी समय पहले चालान की अनुमति के लिए पत्र लिख दिया था।
काफी प्रयास के बाद पीडब्ल्यूडी के वरिष्ठ अफसरों ने हाल ही में माथुर के खिलाफ चालान पेश करने की अनुमति दे दी, लेकिन दुबे का मामला अटका दिया। सबइंजीनियर के खिलाफ अनुमति नहीं मिलने से लोकायुक्त की कार्रवाई फिर अटक गई है। एसपी दिलीप सोनी के मुताबिक, अब फिर दुबे के मामले में अनुमति के लिए रिमाइंडर भेजा गया है।