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सांसद ने ट्विटर पर जारी किया वीडियो
सासंद शंकर लालवानी ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक वीडियो जारी करते हुए कोर्ट के फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए लिखा कि, ‘झूठ के बादल कुछ समय के लिए सत्य के सूरज को ढांक सकते हैं लेकिन सत्य का सूरज सामने आ ही जाता है…कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने हमारे संतों और वरिष्ठ नेताओं पर जो आरोप लगाए थे उन्हें माननीय न्यायालय ने खारिज कर दिया है और सत्य की विजय हुई है।’
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वीडियो जारी कर कही ये बात
सांसद ने अपनी ओर से जारी वीडियो में कहा कि, ‘कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए साफ किया कि, इन सभी नेताओं का इस तरह कोई इरादा नहीं था। जिस प्रकार से बिना किसी इंटेंशन के ढांचे को गिराया गया था, इसमें ये सभी दोषी नहीं हैं। इस खुशी भरे फैसले से राम मंदिर निर्माण को और बल मिलेगा। यह फैसला देश का फैसला है। सभी धर्मों के लोगों को इसे मानना चाहिए।’
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यह है मामला
6 दिसंबर 1992 को पुलिस ने बाबरी मस्जिद ढांचे को गिराने के मामले में 49 लोगों को आरोपी मानते हुए एफआईआर दर्ज की थी। एक एफआईआर हजारों कारसेवकों के खिलाफ थी, जिन्होंने बाबरी मस्जिद गिराई थी, तो वहीं दूसरी एफआईआर में भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार के साथ-साथ विश्व हिंदू परिषद के नेता आरोपी थे। उन पर भीड़ को उकसाने का आरोप लगाया गया था। 47 एफआईआर पत्रकारों और अन्य लोगों से मारपीट की भी थी।
यूपी सरकार ने दोनों प्रमुख एफआईआर की जांच 27 अगस्त 1993 को सीबीआई को सौंपी थी। 5 अक्टूबर 1993 को सीबीआई ने 48 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट भी पेश कर दी थी। इसमें शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह समेत कई अन्य भी आरोपी माने गए थे। सीबीआई ने तीन साल बाद जनवरी 1996 में सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करते हुए कहा था कि, बाबरी मस्जिद को ढहाना सुनियोजित साजिश का हिस्सा था। हालांकि, अब कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि, विध्वंस मामला सुनियोजित नहीं था, जिसके चलते तय आरोपियों को दोषी नहीं माना जा सकता।