नगर निगम चुनाव का शंखनाद हो गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर प्रदेशभर के नगरीय निकायों में अंदरखाने वार्डों में आरक्षण कराए जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। जिले में ओबीसी के प्रतिशत को देखते हुए सीट तय होगी लेकिन ये
स्पष्ट है कि 50 प्रतिशत से अधिक का आरक्षण नहीं होगा। जानकारी के हिसाब से 15 प्रतिशत अजा, 3 प्रतिशत अजजा होने पर 32 प्रतिशत के करीब ओबीसी को सीट मिल सकती है। उस हिसाब से इंदौर नगर निगम में 5 सीट ओबीसी की बढ़ रही हैं।
स्पष्ट है कि 50 प्रतिशत से अधिक का आरक्षण नहीं होगा। जानकारी के हिसाब से 15 प्रतिशत अजा, 3 प्रतिशत अजजा होने पर 32 प्रतिशत के करीब ओबीसी को सीट मिल सकती है। उस हिसाब से इंदौर नगर निगम में 5 सीट ओबीसी की बढ़ रही हैं।
इसके साथ शहर में एक बड़ी चर्चा अजा वर्ग के वार्डों को लेकर भी हो रही है। वैसे तो 13 वार्ड अजा वर्ग के लिए आरक्षित हैं लेकिन ये कौन-कौन से होंगे, इसको लेकर राजनीतिक दल के नेता-कार्यकर्ता कवायद लगा रहे हैं। इसके पीछे तर्क है कि अजा वर्ग के वार्डों का आरक्षण 2014 में हुआ था। उसके बाद विकास में शहर की कई बस्तियों को अन्य जगहों पर शिफ्ट कर दिया गया। उस हिसाब से वहां अजा वर्ग की आबादी कम हो गई। उससे वार्ड आरक्षण के चंगुल से छूट सकता है लेकिन ऐसा नहीं है। निर्वाचन के जानकारों के हिसाब से जो वार्ड पूर्व में आरक्षित थे, वही अब भी रहेंगे।
ये हैं मजबूत तर्क
नगरीय निर्वाचन के जानकारों के मुताबिक अजा व अजजा वर्ग के वार्डों के आरक्षण का आधार जनगणना 2011 है। उसके हिसाब से सबसे ज्यादा आबादी जिन वार्डों में है, उन्हें आरक्षित किया गया है। भले ही बाद में मतदाता कितने भी इधर के उधर हो जाएं लेकिन कोई बदलाव नहीं आएंगे। उसके बाद न तो जनगणना हुई है और न वार्डों का परिसीमन किया गया है। उस हिसाब से जो वार्ड पहले आरक्षित थे, वे आज भी आरक्षित रहेंगे।
नगरीय निर्वाचन के जानकारों के मुताबिक अजा व अजजा वर्ग के वार्डों के आरक्षण का आधार जनगणना 2011 है। उसके हिसाब से सबसे ज्यादा आबादी जिन वार्डों में है, उन्हें आरक्षित किया गया है। भले ही बाद में मतदाता कितने भी इधर के उधर हो जाएं लेकिन कोई बदलाव नहीं आएंगे। उसके बाद न तो जनगणना हुई है और न वार्डों का परिसीमन किया गया है। उस हिसाब से जो वार्ड पहले आरक्षित थे, वे आज भी आरक्षित रहेंगे।
बदलाव की संभावना बहुत कम है। नगरीय प्रशासन विभाग के नियमों को छेड़ा नहीं जा सकता। तर्क ये भी है कि शिफ्ट किए गए व्यक्ति को चुनाव लडऩा है तो वह आकर लड़ सकता है। पूरे शहर का मतदाता अपनी क्षेणी के किसी भी वार्ड से चुनाव लड़ सकता है। इसको लेकर कई लोग दबाव भी बना रहे हैं, लेकिन राज्य निर्वाचन व जिला निर्वाचन का फार्मूला भी फिक्स है।