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मरीजों की सुविधा का पैसा डॉक्टरों के कमरों पर किया जा रहा खर्च

locationइंदौरPublished: May 12, 2018 10:14:50 am

एसीएस की मां के अटेंडर के लिए प्राइवेट वार्ड में लगाया एसी

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इंदौर. एमवाय अस्पताल में अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) राधेश्याम जुलानिया की मां के इलाज के लिए ताबड़तोड़ वीआईपी व्यवस्था करने का मामला सामने आने के बाद यहां आम मरीजों की फजीहत का सवाल जस का तस खड़ा है। प्रबंधन ने बड़े साहब को खुश करने के लिए डायलिसिस यूनिट का एसी निकालकर प्राइवेट वार्ड में लगा दिया पर आम मरीजों की परेशानी पर किसी का ध्यान नहीं है।
एमवाय अस्पताल को हर साल करीब ४० करोड़ रुपए का बजट शासन से मिलता है पर दवा सहित इलाज के लिए जरूरी संसाधन पर ही ३० करोड़ खर्च हो जाते हैं। अस्पताल में मरीजों को मिलने वाली सुविधाओं के लिए करीब ७० करोड़ की हर साल जरूरत है, जो पैसा मिलता है, उसमें भी बंदरबांट होने से हालात बदतर हैं।
जरूरत 70 करोड़ की
एमजीएम मेडिकल कॉलेज के अधीन आने वाले एमवाय अस्पताल के साथ कैंसर, चाचा नेहरू, मेंटल अस्पताल के लिए शासन द्वारा हर साल ४० करोड़ रुपए जारी होते हैं। इसमें दवा, किट्स, उपकरण, केमिकल, डिस्पोजल के साथ लिफ्ट मेंटेनेंस, नए निर्माण, इमारत व उपकरणों का मेंटेनेंस आदि काम होते हैं। दवा व इलाज के अन्य खर्चों में सालाना ३० करोड़ रुपए खर्च होते हैं, फिर भी ४० फीसदी मरीजों को दवा नि:शुल्क नहीं मिल पाती। साथ ही विशेषज्ञ जांच और डायग्नोस्टिक सेंटर पीपीपी मॉडल पर होती हैं। इसके अलावा मेडिकल कॉलेज को हर साल मेडिकल स्टूडेंट्स की फीस, सामान्य मरीजों के पर्ची शुल्क, ठेकों व अनारक्षित जांचों से ऑटोनोमस सोसायटी के फंड में १० करोड़ रुपए की आय होती है। इसमें से अधिकतर पैसा भी दवा के खर्च में जाता है। अस्पताल प्रबंधन सूत्रों की मानें तो अस्पताल में मरीजों को जरूरत की सुविधाओं के लिए ही ७० करोड़ रुपए सालाना जरूरत है।
अधीक्षक कक्ष को रिनोवेट कर लाखों रुपए खर्च किए गए
मेंटेनेंस और वार्ड में मरीजों को पंखे-कूलर की व्यवस्था भले ही ना हो पा रही हों, लेकिन अस्पताल में लाखों रुपए का खर्च डॉक्टरों के कमरों पर किया जा रहा है। हाल ही में अधीक्षक कक्ष को रिनोवेट कर लाखों रुपए खर्च किए गए। बोन मैरो सेंटर तैयार करने के साथ बाहर डॉक्टरों के लिए एसी कक्ष तैयार कर लिया। यही हाल मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों को मिले कमरों का है।
एचएलएल कंपनी को 18 करोड़ रुपए सालाना का ठेका
एमजीएम से संबंध अस्पतालों में सफाई, सुरक्षा, डाटा इंट्री, व्हील चेयर आदि काम के लिए एचएलएल कंपनी को १८ करोड़ सालाना का ठेका दिया है। उपकरणों की देखरेख का ठेका भी इसी को दिया जाना था। कंपनी ने सर्वे किया, पर प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी। कंपनी को पैसा राज्य शासन द्वारा सीधे दिया जाता है। अस्पताल व कॉलेज प्रबंधन केवल निगरानी का काम कर रिपोर्ट देते हैं।
डायलिसिस यूनिट में संस्था ने लगाए थे एसी
जिस डायलिसिस यूनिट से एसी निकालकर प्राइवेट वार्ड में लगाया है, उसे करीब तीन साल पहले मानव मंदिर फाउंडेशन ने गोद लिया था। फाउंडेशन की प्रतिभा खंडेलवाल ने बताया, यूनिट में दो डायलिसिस मशीन, एक वेट मशीन, दो एसी के साथ 15 लाख की लागत से रिनोवेशन कराया था। उस वक्त पूरे अस्पताल में लगे १५० एसी भी रिपेयर व उनकी सर्विसिंग कराई थी। बाद में यूनिट में लगे उपकरणों के मेंटेनेंस के लिए डेढ़ लाख रुपए का एस्टीमेट दिया, जिस कंपनी से काम कराया था। उसके सर्वे में खर्च काफी कम आया। इस संबंध में जिम्मेदारों से बात की गई तो रवैया बेहद नकारात्मक था, इसके चलते आगे एमओयू नहीं किया।
यूनिट का यह है हाल
यूनिट में दान में मिली तीन डायलिसिस मशीन को मिलाकर कुल ६ मशीनें हैं। इनमें से तीन ही चालू हैं। दान में मिले दो एसी के अलावा एक एसी ही लगाया था, जिसे निकाल लिया गया। रोजाना ४०० डायलिसिस की वेटिंग रहती है। इसके लिए सिर्फ एक टेक्नीशियन है। इस कारण रात के वक्त डायलिसिस नहीं हो पाता। एक मरीज को २ से तीन घंटे यूनिट में गुजारने होते हैं, इसके लिए तापमान कंट्रोल रखने के लिए एसी जरूरी है।
अस्पतालों के लिए शासन से जो राशि हर साल मिलती है, लगभग उतना ही खर्च दवा, उपकरण, केमिकल व अन्य संसाधनों पर होता है। जांचें नि:शुल्क होने से ऑटोनोमस सोसायटी की कमाई भी सीमित है।
डॉ. राहुल रोकड़े, प्रवक्ता एमजीएम मेडिकल कॉलेज
मेंटेनेंस का काम पीडब्ल्यूडी विभाग की इलेक्ट्रॉनिक शाखा के माध्यम से होता है। वह जो एस्टीमेट देते हैं, उस हिसाब से काम कराया जाता है। वार्ड में जो कमी है, उसके लिए मेडिकल कॉलेज को पत्र लिखते हैं।
डॉ. वीएस पाल, अधीक्षक एमवाएच
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