इंदौर में रोजगार की तलाश में आने वालों की संख्या हर साल बढ़ जाती है। ये सिलसिला पिछले कई दशकों से चल रहा है। उनमें मजदूरी करने वाले गरीब सरकारी जमीन पर कब्जा करके रहने लग गए जिन्हें सरकार ने पट्टे देकर बसा दिया। ये सिलसिला १९८४ में मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की सरकार में शुरू हुआ थो जो लगातार जारी है।
समय-समय पर सरकार पट्टों को वितरण करती रही है। इंदौर जिले में पट्टाधारियों की संख्या ४० से ५० हजार के बीच में है। इसमें नेशनल व स्टेट हाईवे के आसपास भी पट्टे बांट दिए गए। बाद में जब विस्तार की बात आती है तो पट्टाधारी ही मुसीबत बनकर खड़े हो जाते हैं। कोर्ट-कचहरी की वजह से निर्माण का काम उलझ जाता है।
ऐसे में अब सरकार ने फैसला कर लिया है कि नेशनल व स्टेट हाईवे क्षेत्र के ५०० मीटर की परिधि में पट्टों का वितरण नहीं किया जाएगा। इसको लेकर नजूल अधिकारी रवि कुमार ने एसडीएम व तहसीलदार को आदेश जारी कर दिया है कि सरकार की इस मंशा को ध्यान में रखकर आगामी कार्रवाई की जाए। पंचायत स्तर पर रोक लगाने के लिए जिला पंचायत सीईओ व जनपद सीओ को भी कहा जाएगा।
पंचायत स्तर पर ऐसे पट्टों के वितरण को लेकर शिकायत भी आ रही थी जिस पर विशेष ध्यान देने के निर्देश दिए गए। इधर, संभावना ये भी है कि नेशनल व स्टेट हाईवे पर मौजूद पट्टाधारियों को हटाने की कार्रवाई भी की जा सकती है।
लिंक रोड बनाने में हुई थी फजीहत गौरतलब है कि इंदौर शहर में भी कई जगह ऐसे पट्टे वितरण किए गए थे जो बाद में जिला प्रशासन के गले की हड्डी बन गए। ऐसा ही एक मामले एलआईजी लिंक रोड का है जिस पर २२ लोगों को चौराहे के मुहाने पर पट्टे दे दिए थे। बाद में प्रशासन ने सभी के पट्टों को निरस्त किया गया जिसको लेकर जमकर बवाल हुआ।
कुछ पट्टाधारी तो कोर्ट चले गए थे, जिसका फैसला आना अभी भी बाकी है। हालांकि आईडीए ने सड़क बना दी। इसी प्रकार नायता मुंडला में भी थोकबंद पट्टे बांटे गए थे। नए आरटीओ ऑफिस को रास्ता देने के लिए प्रशासन को मशक्कत करना पड़ी। कई बार कार्रवाई करने पहुंचे दल को बैरंग लौटना पड़ा।