हवा से नहीं, संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलता है निपाह वायरस
- केरल में फैले निपाह वायरस पर एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने किया शोध

लखन शर्मा, इंदौर।
चमकादड़ो से इंसानों मै फैले निपाह वायरस से केरल में अब तक 11 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि कई पीडि़त जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। अब तक इसका कोई भी इलाज या वेकसीन उपलब्ध नहीं होने के कारण पीडि़त व्यक्ति की मौत तय मानी जाती है। एसे में अब केरल के साथ ही सभी प्रदेशों में इसको लेकर अलर्ट जारी हो गया है। जिनमें प्रमुख रूप से जम्मू-कश्मीर, गोवा, राजस्थान और तेलंगाना शामिल हैं। राजस्थान में अलर्ट घोषित करने से मध्य्रपेदश में भी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने इसको लेकर शोध शुरू किया। एमजीएम मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग ने अपने यहां पढऩे वाले छात्रों को इसकी विस्तृत जानकारी और पढ़ाने के उद्देश्य से पिछले कुछ दिनों से इस पर शोध किया जिसमें कई तथ्य सामने आए।
मेडिसिन विभाग के सीनियर प्रोफेसर डॉ. वीपी पांडेय ने बताया की यह वायरस सालों से चमकादड़ो में मौजुद था, लेकिन इसने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया। यह वायरस हवा में नहीं फैलता इसलिए इससे घबराने और डरने की भी जरूरत नहीं है। हमने पिछले दिनों जब इसके बारे में सुना तब हमारे लिए भी यह नया था फिर हमने छात्रों को साथ लेकर इस पर रिसर्च शुरू की। जितनी जानकारी सामने आई उसके मुताबिक यह व्यक्तिगत संपर्क से ही फैलता है। केरल के भी कुछ कुओं से यह वायरस फैला जहां चमकादड़ थे। चमकादड़ों के मरने से या तो वे वहां पानी में गिरे और लोगों ने वह पानी पिया या फिर वहां मरे हुए चमकादड़ो को जानवरों ने खाया जिनका मांस लोगों ने खाया और उन्हे यह संक्रमण फैला। इसलिए इससे अधिक घबराने की जरूरत नहीं है सिर्फ सतर्क रहने की जरूरत है। डॉ. पांडेय बताते हैं की फ्रुट बैट या ***** जैसे जानवर इस वायरस के वाहक हैं। संक्रमित जानवरों के सीधे संपर्क में आने या इनके संपर्क में आई वस्तुओं के सेवन से निपाह वायरस का संक्रमण होता है। निपाह वायरस से संक्रमित इंसान भी संक्रमण को आगे बढ़ाता है। 1998 में पहली बार मलेशिया के कांपुंग सुंगई निपाह में इसके मामले सामने आए थे। इसीलिए इसे निपाह वायरस नाम दिया गया। 2004 में यह बांग्लादेश में इस वायरस के प्रकोप के मामले सामने आए थे। बताया जा रहा है कि केरल में यह पहली बार फैला है। डॉक्टरों की माने तो इस वायरस से प्रभावित शख्स को सांस लेने की दिक्कत होती है फिर दिमाग में जलन महसूस होती है। तेज बुखार आता है। वक्त पर इलाज नहीं मिलने पर मौत हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कह चुका है की इस वायरस का अभी तक वैक्सीन विकसित नहीं हुआ है। इलाज के नाम पर मरीजों को इंटेंसिव सपोर्टिव केयर ही दी जाती है।
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