पिछले दिनों कलेक्टर मनीष ङ्क्षसह के निर्देश पर नकल शाखा को आदेश जारी किए थे, जिसमें सिर्फ ऑर्डर शीट व ऑर्डर ही देने को कहा गया। उसके अलावा अन्य दस्तावेज की कॉपी देने पर रोक लगा दी गई। स्पष्ट कर दिया गया कि फाइल की प्रति नहीं दी जाएगी। तर्क था कि नकल निकलवाकर वे लोग मिस यूज करते हैं जिनका कोई लेना-देना नहीं होता है। कुछ लोगों ने हाई कोर्ट में तक पिटिशन लगा दी, जिसकी वजह से सरकारी अमले को परेशान होना पड़ता है।
इसका सीधा असर वकीलों के कामकाज पर पड़ा, क्योंकि फाइल की नकल नहीं मिलेगी तो वे केस कैसे लड़ेंगे? किस आधार पर ऊपरी अदालत में जिरह करेंगे। इसको लेकर सभी वकील लामबंद होकर कलेक्टर मनीष ङ्क्षसह से मिले। उसमें संजय पाठक, तुषार दुबे, जयंत पटवार और सचिन भावसार प्रमुख थे। चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि बगैर फील्ड बुक, पंचनामा, प्रतिवेदन, बंटवारा फर्द, बटांकन फर्द, बयान, प्रतिपरीक्षण इत्यादि दस्तावेजों के बिना प्रकरण में आगामी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। इसके अलावा कोई भी केस हो, बगैर दस्तावेज के आगे कैसे बढ़ा सकते हैं। टीएंडसीपी भी कराएंगे तो पहले फील्ड बुक लगती है। बटांकन फर्द लगती है। नकल नहीं दोगे तो पेश क्या करेंगे?
कलेक्टर ने सुना-समझा
वकीलों के सारे तर्क कलेक्टर ङ्क्षसह ने ध्यान से सुने। इस पर वकीलों ने ही सुझाव दिया कि ऐसी व्यवस्था कर दें कि आवेदक व अनावेदक के वकील ही नकल निकाल सकें। इसे अनधिकृत व्यक्ति नहीं निकाल पाए। आवेदन में बकायदा वकील का नाम, मोबाइल नंबर व पते के साथ में सनद नंबर भी लिखा जाए। उस फॉर्मेट को लागू कर दिया जाए। इस पर कलेक्टर को सुझाव समझ में आ गया। उस सुझाव को मानते हुए सिविल कोर्ट के फॉर्मेट के आधार पर नकल देने का निर्णय लिया गया।
पुराने आवेदन पर भी दो
चर्चा के दौरान वकीलों ने पुराने आवेदनों की नकल दिलवाने की बात भी कही। इस पर ङ्क्षसह ने तुरंत अपर कलेक्टर राजेश राठौर को निर्देश दिए कि वकीलों के आवेदनों पर नकल दी जाए। चौंकाने वाली बात ये है कि नकल दी जाना शुरू हो गई।