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पढि़ए अब, नई भूमिका में आए रिटायर्ड जज, वकील, बना रहे नए ‘कुटुंब’

locationइंदौरPublished: Sep 24, 2017 03:14:19 pm

मीडिएटर, वकील की समझाइश से फिर बस रही गृहस्थी, विवादों के चलते जिन पति-पत्नी ने अलग होने का बना लिया था मन, फिर हो गए एक

family court indore
रीना शर्मा विजयवर्गीय
इंदौर. कई बार छोटी-मोटी नोकझोंक और विवाद के चलते रिश्तों में ऐसी दरार आ जाती है, जो भरना कई लोगों को मुश्किल लगने लगता है, लेकिन इन्हें भरना और दो टूटे दिलों को जोडऩे का मुश्किल भरा काम कर रही है शहर की एक ऐसी टीम, जिनकी झोली कई परिवारों और मासूमों की दुआओं से भरी हुई है।
ये टीम यूं तो सालभर कुटुंब न्यायालय में पारिवारिक विवादों की पैरवी करती है, लेकिन उनकी कोशिश होती है कि कोई भी रिश्ता टूटे नहीं। इसके लिए कायदों के बजाय भावनाओं का सहारा लेने में भी ये नहीं हिचकिचाते। वकील वंदना शर्मा, मीडिएटर आरपी वर्मा अपने वकील साथियों के साथ इस काम को बखूबी कर रहे हैं। दरअसल, कुटुंब न्यायालय में पति-पत्नी के विवादों के मामलों की संख्या पहले के मुकाबले दोगुना हो गई है। सहनशक्ति की कमी, अहं के कारण बहुत छोटी बात तलाक का कारण बन जाती है। पति-पत्नी इस तरह अडिग हो जाते हैं कि कई बार उन्हें वापस मिलाने का रास्ता ही नहीं सूझता। ऐसे में आरपी वर्मा और वंदना शर्मा परिवार, बच्चों का हवाला देकर उनकी गृहस्थी फिर बसाते हैं।
केस: 1 बीमारी की वजह से हो रहा था तलाक, बेटे के जन्म से हुए एक
भोपाल में रहने वाले पुलिसकर्मी श्याम का इंदौर की शीतल से चार साल पहले विवाह हुआ था। विवाह के बाद शीतल को मिर्गी के दौरे पडऩे लगे। इससे श्याम का परिवार परेशान हो गया। विवादों के बाद तलाक का केस फाइल कर दिया। तब शीतल गर्भवती थी। कोर्ट में प्रकरण चला। उस दौरान ही उसने बेटे को जन्म दिया। शीतल की वकील वंदना ने भोपाल में श्याम का केस लड़ रहे वकील से बात की। दंपती को बच्चे की परवरिश का हवाला दिया। दोनों की लगातार काउंसलिंग की। हाल ही में 29 अगस्त को दोनों ने एक होने का फैसला किया और केस वापस ले लिया। पति ने पत्नी की पूरी जिम्मेदारी लेकर उसका इलाज शुरू करवा दिया है।
केस: 2 दो साल बाद होने लगा विवाद, पहली तारीख में वापस लिया केस
महिमा के विवाह के कुछ साल बाद पति का देहांत हो गया। उसके तीन बच्चे थे। रमेश नामक युवक ने उसके सामने बच्चों की जिम्मेदारी उठाने के वादे का साथ शादी का प्रस्ताव रखा। शादी के दो साल बाद दोनों में विवाद होने लगे। रमेश महिमा से आठ साल छोटा था, हालांकि वह बच्चों की देखभाल करता था, लेकिन विवाद इतने बढ़े कि मामला कोर्ट में पहुंचा। तब महिला गर्भवती थी। कोर्ट की पहली तारीख पर ही दोनों को साथ बैठा दिया गया। चार बच्चों की जिंदगी का हवाला देकर उन्हें साथ रहने की समझाइश दी। इसका असर ये हुआ कि दोनों ने केस वापस ले लिया और एक हो गए।
केस: 3 पिता देने लगे बेटी को २ हजार रुपए प्रतिमाह
२० साल पहले पत्नी से तलाक लेने के बाद पति ने ५० हजार रुपए पत्नी और 30 हजार रुपए बेटी के जीवन यापन के लिए दिए। बेटी बड़ी हुई, उसके खर्च बढ़े, रुपयों की जरूरत लगने लगी तो कोर्ट में मामला पहुंचा। पिता और पैसा देने को तैयार नहीं थे। केस में पिता की तरफ से प्रमोद जोशी और बेटी की तरफ से वंदना शर्मा वकील थीं। वकीलों और जज की समझाइश से दोनों पक्षों में सहमति बनी और सरकारी नौकरी कर रहे पिता ने हर महीने दो हजार रुपए देने का वादा किया। वंदना के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के नए आदेशों के मुताबिक पत्नी से तलाक के बाद भी यदि बच्चों को आगे पढ़ाई के लिए रुपयों की जरूरत होती है तो पिता को देना अनिवार्य होता है।
फैक्ट फाइल:
– ५० से ६० केस हर दिन पहुंच रहे तलाक के
– 7० से ८० केस भरण-पोषण के
– ४ से ५ केस बच्चों की कस्टडी के

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