अंधेरगर्दी: रिकॉर्ड में नहीं जमीन, अनुदान की जानकारी क्षेत्र की तहसीलदार व नायब तहसीलदार को पता ही नहीं है कि गोशाला के पास कितनी जमीन है। तहसीलदार पल्लवी पुराणिक कहती हैं-सुना है कि प्रति गाय 21०० रुपए प्रतिवर्ष अनुदान मिलता है, लेकिन इसे देखना पड़ेगा। ट्रस्ट से जमीन की जानकारी जरूर लेंगे। तहसीलदार ने ट्रस्ट के प्रमुख रामेश्वर असावा को फोन कर बुलाया, लेकिन वे शाम तक नहीं आए थे।
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४२ शव पर चमड़ी नहीं, १८ कंकाल हाथ लगाने से ही बिखर गए पशु चिकित्सा विभाग की टीम का कहना था कि 42 शव पर चमड़ी तक नहीं थी। 18 कांकल पुराने थे, जिन्हें हाथ लगाने पर ही हड्डियां बिखर रही थीं। पोस्टमॉर्टम जैसी स्थिति नहीं थी। लोगों ने भूख से मौत होने की आशंका जाहिर की है। लेकिन शव एेसी हालत में थे कि मौत का कारण नहीं बताया जा सकता। गोशाला में डेढ़ सौ टन भूसा था। उधर, वृद्ध पशु लाने वाले की ट्रस्ट रसीद काटकर दान भी लेता था। किसी से डेढ़ तो किसी से दो हजार लिए जाते हैं। मैनेजर अशोक ने माना कि रसीद काटते हैं, लेकिन एक बार। ट्रस्ट का ऑडिट होता है।
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शवों के पास मिले इंश्योरेंस के टैग - ट्रस्ट में 257 गाय, 143 बछिया, 116 बछड़े, 6 नंदी, 11 बैल हैं। - शवों के पास इंश्योरेंस के टैग भी मिले हैं। इससे साफ है कि गोवंश का इंश्योरेंस भी होता था।
शवों के पास मिले इंश्योरेंस के टैग - ट्रस्ट में 257 गाय, 143 बछिया, 116 बछड़े, 6 नंदी, 11 बैल हैं। - शवों के पास इंश्योरेंस के टैग भी मिले हैं। इससे साफ है कि गोवंश का इंश्योरेंस भी होता था।
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ट्रस्ट अध्यक्ष बोले ट्रस्ट अध्यक्ष रामेश्वर असावा ने कहा, गोशाला में मरणासन्न स्थिति में बुजुर्ग गायों को लाया जाता है। हम देखरेख करते हैं, पूरी टीम लगा रखी है। जो खेती होती है, वह अपर्याप्त है। हरा भूसा भी उगाते हैं। अधिकांश जमीन पथरीली है, ज्यादा इस्तेमाल नहीं होता। सरकार ने 15 महीनों से अनुदान नहीं दिया, पिछले साल 25 लाख का चारा खरीदा। ट्रस्टी खुद पैसा लगाते है। 4 करोड़ में जमीन बेचकर 2 करोड़ की एफडी कराई थी, उसका ब्याज मिलता है। पहले खादी ग्रामोद्योग वाले शव ले जाते थे, अब नहीं ले जाते तो वन विभाग की जमीन पर रखवा देते हैं। यहीं प्रक्रिया चल रही थी, अब अधिकारियों से पूछेंगे कि आगे क्या प्रक्रिया अपनाएं।
ट्रस्ट अध्यक्ष बोले ट्रस्ट अध्यक्ष रामेश्वर असावा ने कहा, गोशाला में मरणासन्न स्थिति में बुजुर्ग गायों को लाया जाता है। हम देखरेख करते हैं, पूरी टीम लगा रखी है। जो खेती होती है, वह अपर्याप्त है। हरा भूसा भी उगाते हैं। अधिकांश जमीन पथरीली है, ज्यादा इस्तेमाल नहीं होता। सरकार ने 15 महीनों से अनुदान नहीं दिया, पिछले साल 25 लाख का चारा खरीदा। ट्रस्टी खुद पैसा लगाते है। 4 करोड़ में जमीन बेचकर 2 करोड़ की एफडी कराई थी, उसका ब्याज मिलता है। पहले खादी ग्रामोद्योग वाले शव ले जाते थे, अब नहीं ले जाते तो वन विभाग की जमीन पर रखवा देते हैं। यहीं प्रक्रिया चल रही थी, अब अधिकारियों से पूछेंगे कि आगे क्या प्रक्रिया अपनाएं।