दरअसल, आयुक्त भू-अभिलेख द्वारा लागू की गई गिरदावरी ऐप व्यवस्था को लेकर शुरू में पटवारियों ने खूब हल्ला मचाया। कभी ओटीपी नहीं आने तो कभी नेट की समस्या बताकर इसे नकारने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए। अब सारी समस्याओं का समाधान कर ऐप अपडेट किया गया। इसके बाद भी पटवारियों ने किसानों के खेत और कागजों में अलग-अलग फसल उगा दी। इससे जिले के सात हजार किसानों को अपने दस्तावेजों में फसल का सही उत्पादन दर्शाने के लिए तहसीलदारों के चक्कर लगना पड़ रहे हैं।
खरीदी केंद्र पर परेशानी किसानों को सबसे अधिक परेशानी समर्थन मूल्य पर खरीदी केंद्र पर आ रही है। किसान को पंजीयन केंद्र पहुंचने पर पता चलता है, उसका जो रकबा है उसमें चने के बजाय गेहूं या फिर गेहूं के बजाय चने की फसल आ रही है। एेसे में पोर्टल रकबे के हिसाब से ही समर्थन मूल्य पर खरीदी की मंजूरी दे रहा है। एक हेक्टेयर में 50 क्विंटल गेहूं खरीदी की पात्रता है। यदि किसी किसान ने चार हेक्टेयर में गेहूं बोया है तो उसे 400 क्विंटल गेहंू बेचन की पात्रता है, लेकिन पटवारी ने चार में से दो हेक्टेयर में चना भी उगा दिया। इससे किसान महज दो हेक्टेयर के हिसाब से १०० क्विंटल ही गेहंू बेच सकता है। इसके लिए रिकॉर्ड दुरुस्त कराना होगा।
देपालपुर-सांवेर में ज्यादा दिक्कत जिले में एेसी स्थिति सबसे अधिक देपालपुर व सांवेर में है। इसके बाद इंदौर में भी यही हालात हैं। अनुमान के अनुसार, भू-अभिलेख शाखा द्वारा एेसे 7 हजार से अधिक किसानों की जानकारी जुटाकर रिकॉर्ड दुरस्त कराने का प्रयास कर रहा है। भू अधीक्षक श्वेता जामरे ने बताया, तहसीलदारों से जानकारी बुलाई गई है।