गत दिनों आईडीए ने शहर में तीन फ्लाईओवर पर काम शुरू करने की योजना तैयार की थी। इसमें बंगाली चौराहा, शिवाजी वाटिका और पीपल्याहाना चौराहे को शामिल किया गया था। तीनों की डीपीआर तैयार कर सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था। बंगाली चौराहे पर तो लोक निर्माण विभाग काम कर रहा है। इसके बाद पीपल्याहाना चौराहा और शिवाजी वाटिका के प्रोजेक्ट के लिए मंजूरी मांगी गई, लेकिन शिवाजी वाटिका चौराहे पर अंडर पास प्रोजेक्ट को निरस्त कर दिया गया। पीपल्याहाना प्रोजेक्ट की कास्ट अधिक होने के कारण इसमें बदलाव करते हुए नए सिरे से डीपीआर तैयार कर भेजी गई है।
इसमें डिजाइन के साथ ही स्ट्रक्चर में भी बदलाव किया गया है। इसकी लागत करीब ४० करोड़ रुपए है। आईडीए सीईओ गौतम सिंह ने बताया कि प्रस्ताव गैरयोजना मद से भेजा गया है। वर्तमान में ब्रिज निर्माण की आधुनिक तकनीकी का उपयोग किया जा रहा है। साथ ही इसमें किसी तरह की जमीन भी नहीं चाहिए। साइट तैयार है, मंजूरी मिलते ही टेंडर जारी कर काम शुरू कर दिया जाएगा। इस प्रोजेक्ट को प्रीकास्ट टेक्नोलॉजी से तैयार किया गया है, जिससे इसकी लागत भी कम हुई है, इसे समय से पहले बनाने में भी मदद मिलेगी। आईडीए अध्यक्ष शंकर लालवानी का कहना है कि इस ब्रिज को पहले आठ लेन में बनाने का निर्णय लिया गया था। सर्विस रोड के लिए जगह नहीं मिलने के कारण अब इसे ६ लेन बनाया जा रहा है। इसकी जरूरत को देखते हुए इसे जल्दी बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
तीन बार किए बदलाव
प्रोजेक्ट में तीन बार बदलाव किए गए, जिससे लागत ९७ करोड़ रुपए से घटकर ४० करोड़ रुपए रह गई है। अफसरों का कहना है आईडीए इस प्रयास में है कि इसकी लागत को और कम किया जा सके। प्रारंभिक तौर पर ब्रिज का निर्माण आठ लेन में करने का निर्णय लिया गया। इसकी प्रारंभिक कास्ट ९७ करोड़ रुपए आई। यह डीपीआर माइल्ड स्टील गर्डर के हिसाब से बनाई गई थी, जिसे बोर्ड ने अधिक बताते हुए वापस कर दिया।
प्रोजेक्ट में तीन बार बदलाव किए गए, जिससे लागत ९७ करोड़ रुपए से घटकर ४० करोड़ रुपए रह गई है। अफसरों का कहना है आईडीए इस प्रयास में है कि इसकी लागत को और कम किया जा सके। प्रारंभिक तौर पर ब्रिज का निर्माण आठ लेन में करने का निर्णय लिया गया। इसकी प्रारंभिक कास्ट ९७ करोड़ रुपए आई। यह डीपीआर माइल्ड स्टील गर्डर के हिसाब से बनाई गई थी, जिसे बोर्ड ने अधिक बताते हुए वापस कर दिया।
दूसरी बार इसकी चौड़ाई तो आठ लेन रखी गई, लेकिन स्ट्रक्चर टेक्नोलॉजी में बदलाव करते हुए प्रीस्ट्रेस कास्ट गर्डर टेक्नोलॉजी के आधार पर लागत निकाली गई, जिससे इसकी लागत ९७ करोड़ से घटकर ५५ करोड़ रुपए रह गई। रिंग रोड सिक्स लेन है, इस पर ८ लेन ब्रिज बनाना तकनीकी रूप से संभव नहीं था। इसके अलावा ८ लेन ब्रिज के साथ सर्विस रोड भी नहीं बनती, जिससे कॉलोनियों से आवाजाही प्रभावित हो रही थी। आखिरकार इसे ६ लेन बनाने का निर्णय लेते हुए अंतिम रूप से डीपीआर बनाकर सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजा गया है।