डॉ. उलास महाजन ने बताया कि शहर में लोडिंग और ऑटो रिक्शा से रहे प्रदूषण के कारण लगातार मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इनमें आंखों की ड्रायनेस, सांस लेने में तकलीफ आदि परेशानी लेकर मरीज आ रहे हैं। सबसे ज्यादा असर अस्थमा के मरीजों पर हो रहा है। वाहन से निकलने वाले धुए में कॉर्बन मोनो आक्साइड निकलता है, जिससे फेफड़ों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। प्रदूषण से बचाव का एक ही तरीका है या तो एेसे वाहनों को शहर की जद से बाहर कर दिया जाए, जो प्रदूषण फैला रहे हैं या फिर मास्क लगाना शुरू कर दें।
आंखों पर हो रहा असर
डॉक्टरों के अनुसार जो लोग ज्यादा प्रदूषण वाले इलाके में रहते हैं, उनकी आंखें अक्सर लाल रहती हैं। आंखों मेंं जलन, पानी आने और खुजली के साथ ही ड्रायनेस की शिकायत रहती है। शहर में एेसी मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
डॉक्टरों के अनुसार जो लोग ज्यादा प्रदूषण वाले इलाके में रहते हैं, उनकी आंखें अक्सर लाल रहती हैं। आंखों मेंं जलन, पानी आने और खुजली के साथ ही ड्रायनेस की शिकायत रहती है। शहर में एेसी मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
प्रदूषण ही प्रमुख कारण
जानकारी के अनुसर सिर के बाल से लेकर पैरों के नाखून तक पर प्रदूषण अपना असर छोड़ता है। वायु प्रदूषण के चलते जहरीले तत्व सांस में घुल कर शरीर में पहुंच रहे हैं। सांस लेने में तकलीफ होने लगे, सांस खींचने में जोर लगाना पड़े तो समझ जाएं कि आप प्रदूषण की गिरफ्त में हैं। आंखों से पानी आना, आंख में जलन और खुजली भी प्रदूषण के कारण ही होती है। गले में जलन महसूस होने लगे तो इसकी वजह प्रदूषण ही है।
जानकारी के अनुसर सिर के बाल से लेकर पैरों के नाखून तक पर प्रदूषण अपना असर छोड़ता है। वायु प्रदूषण के चलते जहरीले तत्व सांस में घुल कर शरीर में पहुंच रहे हैं। सांस लेने में तकलीफ होने लगे, सांस खींचने में जोर लगाना पड़े तो समझ जाएं कि आप प्रदूषण की गिरफ्त में हैं। आंखों से पानी आना, आंख में जलन और खुजली भी प्रदूषण के कारण ही होती है। गले में जलन महसूस होने लगे तो इसकी वजह प्रदूषण ही है।