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परिवार तो छोड़ गया था आश्रम में… गोद ने बदली तकदीर

locationइंदौरPublished: Sep 17, 2017 12:06:20 pm

परिस्थितियों के शिकार दो बच्चे अब जी रहे बेहतर जीवन

Positive story orphaned children

mother

रीना शर्मा विजयवर्गीय@ इंदौर. कहते हैं बच्चे को जन्म देने पर महिला का भी दूसरा जन्म होता है। बच्चे को वह अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती है, उसके लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहती है, लेकिन कई बार परिस्थितियां ऐसी बन जाती हैं कि चाहकर भी वह उसका लालन-पालन नहीं कर पाती। ऐसे बच्चे अनाथालय की चौखट तक पहुंच जाते हैं, पर हाल ही में ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जिनसे तसल्ली मिली कि बच्चे को जो मिलना चाहिए था, वह जरूर मिला, भले ही गोद बदल गई।
अमूमन अनाथालय में पलने वाले बच्चों को लेकर आम लोग कुछ अलग ही धारणा बनाकर रखते हैं। उनकी सोच को बदलने का काम ये बच्चे कर रहे हैं। अपने कर्म से ये अपनी तकदीर बदलने में लगे हैं। ऐसे ही दो बच्चों की कहानी, जो उनके अनाथालय में आने पर ह्रदय विदारक पीड़ा थी, अब गर्व का विषय बन गई है।
जानिए इन बच्चों की कहानियां…
मेरे बेटे को एलर्जी है, ध्यान रखना…
घड़ी में रात के 10 बज रहे होंगे। संस्था के बाहर एक गार्ड के सिवाए कोई नहीं था। भीतर कई दाई माएं थीं, जो बच्चों को सुलाने की तैयारी कर रही थीं। ठीक उसी वक्त एक कार बाहर आकर रुकी। कपड़े से चेहरा ढांककर उतरी युवती की गोद में बच्चा था, क्षणभर में उसने बच्चे को पालने में छोड़ा और चली गई। मां ने उस वक्त अपने दिल पर कितना बड़ा पत्थर रखा होगा, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पालने में सुलाए बच्चे की उम्र करीब 11 महीने की थी। यानी 11 महीने तक मां ने बच्चे को पाला, फिर विषम परिस्थितियों के कारण उसे छोडऩा पड़ा। बहरहाल, बच्चे के पास एक चिट्ठी व कुछ जरूरी सामान था। पत्र में उसने बच्चे की सुबह से रात तक की दिनचर्या लिखी थी। यह भी कि इसे किस चीज से एलर्जी है और यह भी कि इसको कितने इंजेक्शन लग चुके हैं। मासूम, खत और अपने अरमानों को वहीं आंसुओं के साथ छोडक़र युवती चुपचाप चली गई। बच्चा इतना खूबसूरत था कि देखते ही उस पर दिल आ जाए। थोड़े समय बाद ही शहर के एक संभ्रांत परिवार ने उसे गोद ले लिया। वह बच्चा आज छह वर्ष का हो चुका है। कुछ समय पहले बच्चे ने एमपी क्यूटेस्ट बेबी कॉम्पीटिशन में भाग लिया। उसमें वह विनर रहा। बताते हैं कि पढ़ाई में भी वह काफी दक्ष है।
चिट्ठी में लिखी बेटी की पसंद-नापसंद
करीब चार साल पहले 1 वर्ष की बेटी को आश्रम के बाहर छोडक़र जाने वाली बच्ची की मां ने उसकी पसंद-नापसंद एक डायरी में नोट करके उसके बैग में रख दी थी। इसमें भी यह लिखा कि उसे क्या-क्या पसंद है और क्या करने पर चिढ़ती है। मां का पूरा लाड़-दुलार चिट्ठी में उमड़ रहा था। उसकी भावनाएं शब्दों से बह रही थी। बच्ची स्वस्थ और सुंदर थी। उसका लालन-पालन अनाथाश्रम ने किया और अब वह भोपाल के एक प्रतिष्ठित परिवार के पास है। वह भोपाल के सबसे बड़े स्कूल में पढ़ाई कर रही है।

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