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एक गांव ऐसा भी: यहां इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म

locationइंदौरPublished: Jan 27, 2022 07:24:39 am

Submitted by:

Hitendra Sharma

साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल है ये गांव, जहां मुस्लिम कई वर्षों से कर रहे हैं सुंदरकांड और हिन्दू मुस्लिम दोनों रहते है खुश

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मनीष यादव
इंदौर. रतलाम जिले में मुस्लिमों से परेशान हिन्दू अपना घर बार छोड़ रहे हैं। वहीं इस स्थान से कुछ किलोमीटर दूर ही हिंदू मुस्लिम एकता की मिशाल देखने को मिल रही है। इस गांव में मुस्लिम समाज कई वर्षों से हनुमान चालीसा औऱ सुंदरकांड का पाठ करते आ रहा है। कई लोगों ने उनके आचरण को लेकर धमकाया भी, लेकिन उनका यहीं कहना है कि इंसानियत ही हमारा धर्म है। कपड़े या दाड़ी या चोटी रखने से धर्म नहीं होता बल्कि धर्म तो केवल इंंसानियत है।

हम बात कर रहे इंदौर से 80 किलोमीटर दूर स्थित बदवानर विकास खंड के ग्राम कड़ोद कलॉ की। गांव के अंदर घुसते ही सभी घरों पर जयश्री राम लिखा हुआ है। यहां पर करीबन 100 घर मुस्लिम परिवारों के है। गावं के मंदिर में हिंदू के साथ ही मुस्लिम भी है। जो कि हर मंगवार और शनिवार को मंदिर में बैठकर रामायण का पाठ करते है तो सुंदर कांड भी किया करते है। किसी को याद नहीं कि यह सिलसिला कब चालू हुआ, लेकिन दो से तीन पिढिय़ां यह काम कर रही है।

गांव के बाहर यह कहकर मुस्लिमों ने विरोध किया जो वह हिंदू धर्म अपना रहे है, तो हिंदू पुजारी मंदिर में आने का विरोध किया। गांव में किसी को भी कोई फर्क नहीं पड़ता। अब तो पूरी तहसील में कोई भी किसी भी धर्मस्थल आ सकता है। गांव के ही मुन्ना पटेल ने बताया कि बाहर उनका सबजे ज्यादा विरोध मौलवी और पुजारियों ने ही किया है। वह दबाव बनाते थे कि दाड़ी और चौटी रखे, तभी अंदर आने दिया जाएगा। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वह सिंहस्थ में भी जाते है और अपना कार्यक्रम करते आ रहे है।

जन्म कुंडली तक बना लेते थे
मुस्लिम समाज की यूनूश भाई टेलर धर्म-कर्म के ज्ञाता हुआ करते थे। वह न सिर्फ कुरान बल्की रामायण और बाइबल के बारे में सभी बाते जानते थे। वह एक अच्छे भविष्य वक्ता रहे है। कई लोग अपनी जन्मकुंडली तक बनवाने के लिए उनके पास आते थे। मरने से चार दिन पहले ही उन्होंने अपने शार्गीद को इस बारे में बता दिया था।

झगड़ा भी गांव में ही खत्म
ग्रामीणों की माने तो पहले तो गांव के अंदर कोई विवाद होता नहीं है, लेकिन अगर किसी में कहासुनी हो जाए तो गांव के बड़े बैठ जाते है। वह दोनों पक्षों की बात सुनकर जिस किसी भी गलती बाता देते है। वह अपनी गलती मान लेता है और विवाद वहीं पर खत्म हो जाता है।

 

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मेरा धर्म इंसानियत ही है
मुनीर खा उर्फ मुन्ना पटेल ने कहा कि बचपन में घर के पास ही मंदिर था। आरती में घंटी बजाने वाला कोई नहीं मिले तो वह दौड़कर चले जाते थे। इसके बाद संगीत का शौक लगा और वह सुंदर कांड करने लगे थे। करीबन सात वर्षो से नागदा के मंदिर में जाकर सुंदरकांड का पाठ करते आ रहे है। आज मस्जिदों में रोक लग गई, लेकिन किसी भी मंदिर में जाने पर रोक नहीं है। उनका धर्म सिर्फ इंसानियत ही है।
यूसुफ शाह टेलर ने कहा कि घर में बड़े रामायण पड़ा करते थे। वह मां के पेट से ही भजन सुनते आ रहे है। इसके चलते भजन गाने की आदत लग गई। पिता धर्म गुरू भी थे। गांव के बाहर जब कार्यक्रम के लिए जाते है तो कुछ लोग विरोध भी करते है। अब विरोध खत्म हो गया है। वह मंदिर में जाते है तो मंदिर के सारे नियम पालन करते है। मस्जिद में जाते है वहां का नियमों का ध्यान रखते है। आने वाली पिढिय़ां भी जुड़ गई है।
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तीन पिढियों से देखते आ रहे है
हनूमान मंदिर पुजारी महंत भूरुदास वैष्णव ने बताया कि मंदिर में आने पर किसी को भी रोक नहीं है। वह तीन पिढिय़ों से देखते आ रहे है। गांव के ही मुस्लिम आते है और रामायण मंडल के साथ मिलकर भजने करते है। किसी को भी यहां पर कोई आपत्ती नहीं है। गांव के साथ ही आसपास के पूरे इलाके में हिंदू मुस्लिम जैसे कोई बात ही नहीं है।


यहां पर हर त्यौहार मनता है
गांव के विक्रम सौलंकी ने बताया कि गांव में ही हर त्यौहार मनाया जाता है। ताजिए में हम लोग जाते है और कव्वाली गाते है तो दूसरे त्यौहारों पर मुस्लिम भी आते है। उनके पिता सरदार सौलंकी को संगीत का गुरू ही माना जाता रहा है। उनके समय से ही संगीत और हनूमान चालिसा देखते आ रहे है।

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