इंदौर

क्या आप जानते हैं- महिलाओं की तुलना में पुरुष करते हैं ज़्यादा आत्महत्या

आत्महत्या जैसे मामले में तुलना नहीं की जा सकती पर पुरुषों को सीखना होगा जीना

इंदौरSep 04, 2017 / 12:32 pm

अर्जुन रिछारिया

women suicide

रीना शर्मा विजयवर्गीय@ इंदौर. महिला-पुरुष लिंगानुपात के बीच खुदकुशी के दर्दनाक मामलों से एक नई बहस शुरू हो सकती है। जिंदगी की जंग लडऩे की इस कठिन चुनौती में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले थोड़ी सशक्त साबित हो रही हैं। साढ़े तीन साल में आत्महत्या के जितने भी मामले सामने आए हैं, उनमें पुरुषों की तादाद महिलाओं से ज्यादा है। इस अवधि में कुल 1951 आत्महत्या की घटनाएं हुईं, जिसमें ऐसा कदम उठाने वाली महिलाएं 926 तो पुरुष 1025 रहे।
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि भागदौड़ भरी जिंदगी, कठिन प्रतिस्पर्धा, असफलता से जल्दी आ रही निराशा जैसी अनेक वजहें आत्महत्या को बढ़ावा दे रही हैं। जान देने से कभी समस्याएं हल नहीं होती, ये समझने के बाद भी लोग अवसाद या गुस्से में जान दे बैठते हैं। उसका खामियाजा पूरा परिवार भुगतता है। ऐसे में जो परिवार, मुश्किलों में व्यक्ति या महिला के साथ खड़ा रहता है, वह उसकी खुदकुशी के बाद और टूट व बिखर जाता है।
थामें जिंदगी की डोर
अभी कुछ दिन पहले ही साथ रहने वाली दो युवतियों ने कोल्ड्रिंक में जहर मिलाकर पी लिया और जीवन लीला समाप्त कर ली। इसके अगले दिन एक नवविवाहिता ने दहेज लोभियों से परेशान जान दे दी। यद्यपि ये दोनों ताजा मामले महिलाओं से जुड़े हैं, लेकिन फिर भी आंकड़े ये बताते हैं कि विकट हालातों में महिलाएं ङ्क्षजदगी से हार मानने की जगह जिंदगी की डोर थामना पसंद करती हैं। जिंदगी की जंग में महिलाओं के मुकाबले पुरुष पिछड़ रहे हैं।
कानून ने भी लगाई रोक
देश में बढ़ती आत्महत्याओं को रोकने के लिए केन्द्र सरकार ने वर्ष 2013 में मानसिक स्वास्थ्य सुविधा विधेयक 2013 पारित किया। इसके बावजूद विश्व की 17 प्रतिशत आत्महत्याएं भारत में होती हैं। दुनिया में प्रतिवर्ष करीब आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं। देश में खुदकुशी के आंकड़ों में मप्र और राजस्थान आगे है।
महिलाओं की संख्या कम, लेकिन कमजोर नहीं
प्रदेश में प्रति हजार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या ७४ कम है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या में पुरुषों का हिस्सा ५१.९२ प्रतिशत तो महिलाओं की हिस्सेदारी 48.074 प्रतिशत है। पिछले चार साल में राजस्थान में १६ हजार 782 आत्महत्या हुई हैं, जिनमें पुरुषों की संख्या 72 प्रतिशत रही। इस दौरान आत्महत्या करने वाली महिलाओं की संख्या 4646 यानी 28 प्रतिशत रही।
फैक्ट फाइल
भारत में 1 लाख 35 हजार लोग हर साल कर रहे आत्महत्या
मध्यप्रदेश में प्रतिदिन 35 से 40 लोग दे रहे हैं जान
मध्यप्रदेश में 60 प्रतिशत पुरुष और 40 प्रतिशत महिलाएं व विद्यार्थी कर रहा खुदकुशी
छोटी-छोटी बातों में हार मानकर लोग कर लेते हैं खुदकुशी, मनोवैज्ञानिक बोले
गुस्सा या अवसाद टाल दें तो नहीं आए खुदकुशी की नौबत
एक्सपर्ट व्यू: ये सोच लें तो नहीं बनेंगे निराशा के हालात
– क्या मैं इतनी/इतना कमजोर हंू कि मैं अपनी जिंदगी खत्म कर लूं? मैं क्या नहीं कर सकता/सकती?
– क्या मैं डरपोक हंू, क्योंकि आत्महत्या का कदम तो डरपोक और असफल लोग उठाते हैं?
– मेरे पास हर समस्या का हल है तो मैं क्या जीने का अधिकार नहीं रखता/रखती?
– मेरी जिंदगी बहुत अनमोल है और मैं ईश्वर के बुलाए बिना कभी खुद को खत्म नहीं करूंगी/करूंगा।
– मैं नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करूंगी/करूंगा और आगे बढक़र व काबिल बनूंगा/बनूंगी।
– क्योंकि जीवन में हर परेशान का कोई न कोई, कुछ न कुछ हल जरूर है।
आत्महत्या की ऐसी वजहें आई सामने
आत्महत्या करने के पीछे मानसिक अवसाद, पारिवारिक कलह, आर्थिक तंग, संबंधों में नाकामी, घरेलू हिंसा, सोशल स्ट्रक्चर कमजोर होना, दूसरों से होड़ करना, जल्दी सफलता न मिलना, दहेज विवाद, आर्थिक या शारीरिक शोषण और नशे की लत प्रमुख वजह के रूप में सामने आए हैं। इसके आलावा लोगों में धैर्य की कमी भी इसका कारण बनती है। बच्चों में इन घटनाओं के बढऩे की वजह माता-पिता का ज्यादा प्रेशर, पढ़ाई में अच्छे नंबर न आना, मेरिट में आने की चुनौती, फेल या सप्लीमेंट्री होने के साथ-साथ गलत लत में पड़ जाना है।

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