लिखने की छूट गई प्रैक्ट्सि
कई बच्चों में ज्यादा नंबर लाने की चिंता हैं तो कईयों को फेल होने का डर सता रहा है। दो साल बाद बच्चे ऑफलाइन एक्जाम देने से कतरा रहे हैं। घर पर बैठकर ऑनलाइन परीक्षा में या तो ऑब्जेक्टिव क्वेश्चंस होते थे या फिर बच्चों को लिखकर अपनी कॉपी ऑनलाइन दिखानी थी, ऐसे में बच्चे काफी कम्फर्ट महसूस कर रहे थें लेकिन अब ऑफ लाइन एक्जाम के चलते उनकी लिखने की प्रैक्ट्सि भी छूट गई है।
कई बच्चों में ज्यादा नंबर लाने की चिंता हैं तो कईयों को फेल होने का डर सता रहा है। दो साल बाद बच्चे ऑफलाइन एक्जाम देने से कतरा रहे हैं। घर पर बैठकर ऑनलाइन परीक्षा में या तो ऑब्जेक्टिव क्वेश्चंस होते थे या फिर बच्चों को लिखकर अपनी कॉपी ऑनलाइन दिखानी थी, ऐसे में बच्चे काफी कम्फर्ट महसूस कर रहे थें लेकिन अब ऑफ लाइन एक्जाम के चलते उनकी लिखने की प्रैक्ट्सि भी छूट गई है।
पैरेंट्स इन बातों का रखें ध्यान
-सख्ती के बजाय संयम से काम लें।
-बच्चों से प्यार से बात करें और नेगेटिव बातें न करें।
-बच्चे निराश हो तो, उन्हें समझाएं कि वो सबसे बेस्ट हैं।
-ज्यादा नंबर लाने या परीक्षा में पास होने का प्रेशर बिल्कुल न बनाएं।
-एक्जाम की तैयारियों के दौरान भी उन्हें खेल-कुद से पूरी तरह दूर न करें।
-पैरेंट्स की तरह नहीं बल्कि बच्चों के सामने एक स्टूडेंट की तरह बैठें।
-बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाएं और किसी ओर के सामने उनकी कमी न बताएं।
-सख्ती के बजाय संयम से काम लें।
-बच्चों से प्यार से बात करें और नेगेटिव बातें न करें।
-बच्चे निराश हो तो, उन्हें समझाएं कि वो सबसे बेस्ट हैं।
-ज्यादा नंबर लाने या परीक्षा में पास होने का प्रेशर बिल्कुल न बनाएं।
-एक्जाम की तैयारियों के दौरान भी उन्हें खेल-कुद से पूरी तरह दूर न करें।
-पैरेंट्स की तरह नहीं बल्कि बच्चों के सामने एक स्टूडेंट की तरह बैठें।
-बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाएं और किसी ओर के सामने उनकी कमी न बताएं।
एक्सपर्ट व्यू
आदत छूट गई जैसी बातें न करें
पैरेंट्स बच्चों के सामने बार-बार पढ़ाई नहीं हुई और दो साल में लिखने की प्रैक्टिस छूट गई जैसी बातें बिल्कुल भी न करें। बच्चों के सामने जितना नेगिेटव बोलेंगे उतना ही वो स्ट्रेस में जाएंगे। उनका मनोबल बढ़ाएं और तैयारियों में उनका साथ दें। रात-रातभर पढ़ाई करने के लिए बिल्कुल न कहें, क्योंकि यह समस्या अक्सर देखी जाती हैं कि पैरेंट्स बच्चों को प्रेशराइज्ड करतें हैं और यह बहुत गलत साबित होता है। नींद भी प्रॉपर लेने दें, खाना भी अच्छी तरह खिलाएं और फास्ट फूड अवोइड करें। प्रॉपर नींद और व्यायाम जरूरी करवाएं। बच्चे एक्जाम हॉल तक जाते-जाते बिल्कुल न पढ़ें बल्कि परीक्षा के तीन घंटे पहले पढऩा बंद कर दें और केवल रिलेक्स रहें।
डॉ. माया बोहरा, चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट
आदत छूट गई जैसी बातें न करें
पैरेंट्स बच्चों के सामने बार-बार पढ़ाई नहीं हुई और दो साल में लिखने की प्रैक्टिस छूट गई जैसी बातें बिल्कुल भी न करें। बच्चों के सामने जितना नेगिेटव बोलेंगे उतना ही वो स्ट्रेस में जाएंगे। उनका मनोबल बढ़ाएं और तैयारियों में उनका साथ दें। रात-रातभर पढ़ाई करने के लिए बिल्कुल न कहें, क्योंकि यह समस्या अक्सर देखी जाती हैं कि पैरेंट्स बच्चों को प्रेशराइज्ड करतें हैं और यह बहुत गलत साबित होता है। नींद भी प्रॉपर लेने दें, खाना भी अच्छी तरह खिलाएं और फास्ट फूड अवोइड करें। प्रॉपर नींद और व्यायाम जरूरी करवाएं। बच्चे एक्जाम हॉल तक जाते-जाते बिल्कुल न पढ़ें बल्कि परीक्षा के तीन घंटे पहले पढऩा बंद कर दें और केवल रिलेक्स रहें।
डॉ. माया बोहरा, चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट
कम्फर्ट जोन से बाहर आने की जरुरत
मार्च में सभी स्कूलों में ऑफलाइन एक्जाम शुरू हो रही है। इस दौरान देखने में आ रहा हैं कि पैरेंट्स और बच्चे दोनों ही पैनिक हैं। पैरेंटस का कहना है हमारे बच्चे की लिखने की आदत छूट गई और बच्चे भी कहीं न कहीं घबरा रहे हैं। ऑनलाइन परीक्षा बच्चों के लिए कम्फर्ट जोन की तरह थी लेकिन अब इससे बाहर आने की भी जरुरत है। टीचर्स तो अपनी ओर से इस कोशिश में लगे हुए ही हैं लेकिन पैरेंट्स की भी इसमें अहम भूमिका रहेगा, वे डरें नहीं और नेगेटिव बातें भी करें।
युके झा, चेयरमेन, सहोदय ग्रुप
मार्च में सभी स्कूलों में ऑफलाइन एक्जाम शुरू हो रही है। इस दौरान देखने में आ रहा हैं कि पैरेंट्स और बच्चे दोनों ही पैनिक हैं। पैरेंटस का कहना है हमारे बच्चे की लिखने की आदत छूट गई और बच्चे भी कहीं न कहीं घबरा रहे हैं। ऑनलाइन परीक्षा बच्चों के लिए कम्फर्ट जोन की तरह थी लेकिन अब इससे बाहर आने की भी जरुरत है। टीचर्स तो अपनी ओर से इस कोशिश में लगे हुए ही हैं लेकिन पैरेंट्स की भी इसमें अहम भूमिका रहेगा, वे डरें नहीं और नेगेटिव बातें भी करें।
युके झा, चेयरमेन, सहोदय ग्रुप
बच्चों का स्वस्थ रहना ज्यादा जरूरी
इस बात में कोई शक नहीं है कि पिछले दो साल में बच्चों को बड़ा नुकसान हुआ है। बच्चों के रियल केलिबर या टैलेंट को उस तरह से परखा नहीं गया और अब वह ऑफलाइन एक्जाम देने में घबरा रहे हैं। पैरेंट्स भी इस बात से डरे हुए हैं। 50 प्रतिशत पैरेंट्स ऑनलाइन एक्जाम ही चाहते हैं। कुछ कहते हैं बच्चों को वैक्सीनेशन नहीं हुआ है। मैं एक मां भी हंू, शिक्षक भी हंू और जागरूक नागरिक भी हंू इसलिए मेना मानना है कि बच्चे का स्वस्थ रहना ज्यादा जरूरी है, जिसमें बच्चे को खुशी मिले और जो उन्हें मेंटली हेल्दी रखें वहीं करना चाहिए, हालांकि १ अप्रैल से शुरू हो रहे नए सेशन में ऑफलाइन क्लासेस की शुरुआत होगी तो सभी चीजें नॉर्मल हो जाएगी।
डॉ. अनिता वैष्णव, प्रिंसिपल, सत्यसांई विद्या विहार स्कूल
इस बात में कोई शक नहीं है कि पिछले दो साल में बच्चों को बड़ा नुकसान हुआ है। बच्चों के रियल केलिबर या टैलेंट को उस तरह से परखा नहीं गया और अब वह ऑफलाइन एक्जाम देने में घबरा रहे हैं। पैरेंट्स भी इस बात से डरे हुए हैं। 50 प्रतिशत पैरेंट्स ऑनलाइन एक्जाम ही चाहते हैं। कुछ कहते हैं बच्चों को वैक्सीनेशन नहीं हुआ है। मैं एक मां भी हंू, शिक्षक भी हंू और जागरूक नागरिक भी हंू इसलिए मेना मानना है कि बच्चे का स्वस्थ रहना ज्यादा जरूरी है, जिसमें बच्चे को खुशी मिले और जो उन्हें मेंटली हेल्दी रखें वहीं करना चाहिए, हालांकि १ अप्रैल से शुरू हो रहे नए सेशन में ऑफलाइन क्लासेस की शुरुआत होगी तो सभी चीजें नॉर्मल हो जाएगी।
डॉ. अनिता वैष्णव, प्रिंसिपल, सत्यसांई विद्या विहार स्कूल