scriptELECTION 2019 – दावेदारों के बीच घिरे शंकर तो गुटों में बंटी पार्टी, पंकज के लिए बड़ी चुनौती | Shankar is surrounded between claimants and big challenge | Patrika News
इंदौर

ELECTION 2019 – दावेदारों के बीच घिरे शंकर तो गुटों में बंटी पार्टी, पंकज के लिए बड़ी चुनौती

महाजन के हटने पर उभरे थे आधा दर्जन से अधिक दावेदार : कांग्रेस में कमलनाथ, सिंधिया और दिग्विजय सिंह गुट में बंटे हैं शहर के नेता

इंदौरApr 25, 2019 / 11:12 am

रीना शर्मा

INDORE

ELECTION 2019 – दावेदारों के बीच घिरे शंकर तो गुटों में बंटी पार्टी, पंकज के लिए बड़ी चुनौती

विकास मिश्रा इंदौर. सियासी रण में दोनों ही उम्मीदवारों के लिए चुनौतियां कम नहीं है। भाजपा में टिकट को लेकर हुए विलंब ने दावेदारों की एक फौज खड़ी कर दी थी। उनमें से कई अब तक मैदान में नहीं उतरे हैं। देपालपुर में बुधवार को हुई बैठक में पूर्व विधायक की गैरमौजूदगी भी चर्चा में है। पूर्व विधायक जिस समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं, संख्या बल में वे काफी प्रभावी है। कांग्रेस भी आंतरिक खेमेबाजी की चपेट में है। पार्टी के अधिकतर कार्यकर्ता गुटों में बंटे हुए हैं। ज्यादातर अपने नेता के क्षेत्र में चुनाव प्रचार को पहुंच गए हैं। उन्हें लाना आसान नहीं है।
शंकर की राह के कंकर

भाजपा उम्मीदवार तय करने में विलंब से आधा दर्जन से अधिक दावेदार मैदान में आ गए थे। शंकर को टिकट मिलने के बाद वे अब खुलकर विरोध तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन चुनाव में पूरे मन से मेहनत करेंगे यह बड़ा प्रश्न हैं। विधायक और महापौर मालिनी गौड़ भी टिकट की मजबूत दावेदार थीं। शहर के सबसे अधिक सिंधी मतदाता भी उन्हीं की विधानसभा चार में ही हैं, जिनके आधार पर शंकर विधानसभा चुनाव में भी चार नंबर की दावेदारी करते रहे हैं। उन्हें गौड़ के समर्थकों को साधना होगा।
नगराध्यक्ष गोपी नेमा, सहकारिता से जुड़े भंवर सिंह शेखावत, ग्रामीण नेता प्रेम पटेल, महाजन समर्थक चंदू माखीजा भी टिकट दावेदार थे। अब इन्हें पूरी ताकत से चुनाव में जुटाने के लिए खासे प्रयास करने होंगे।
लोकसभा प्रभारी रमेश मेंदोला को भी इंदौर सीट का मजबूत दावेदार माना जा रहा था। विधानसभा चुनाव में उन्हें करीब 72 हजार वोट की लीड मिली थी, जिसके लोकसभा में शंकर के पक्ष में परिवर्तित होने की उम्मीद नहीं है। 2009 में दो नंबरी खेमे के विरोध के चलते महाजन को सिर्फ करीब २५० वोटों की लीड मिली थी। हालांकि अभी मेंदोला लालवानी के साथ सक्रिय दिख रहे हैं।
लालवानी को टिकट देने के पीछे पार्टी की सोच शहर का सिंधी वोट बैंक को साधना है लेकिन, हाल में संपन्न समाज के चुनाव में लालवानी की पैनल को करारी हार मिली। यानी सिंधी समाज में उनके कम विरोधी नहीं हैं। ताई का टिकट कटने पर मराठी समाज ने भी विरोध किया था।
संघवी के ‘संघ’ में कई खेमे

शहर कांग्रेस कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट में बंटी हुई है। इन तीनों गुटों के नेताओं को एक मंच पर इक कर चुनाव लडऩा बड़ी चुनौती होगा। जीतू पटवारी खुद टिकट के मजबूत दावेदार थे, अब वे किस स्तर तक पंकज की मदद करते हैं, यह वक्त बताएगा।
पंकज अब तक सिर्फ एक बार पार्षद का चुनाव जीते हैं, वह भी भाजपा की ओर से। उसके बाद वे लोकसभा और विधानसभा चुनाव में शिकस्त खा चुके हैं। पिछले दो चुनाव में उनका मैनेजमेंट फेल रहा है। पार्टी के बजाए उनकी खुद की टीम आगे होती है, जिससे मूल नेता और कार्यकर्ता छिटक जाते हैं।
कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और सिंधिया गुट से जुड़े स्थानीय नेता अपने-अपने आकाओं की लोकसभा सीट पर अभी से सक्र्रिय हो गए हैं। सिंधिया समर्थक गुना और ग्वालियर में पहुंच गए हैं, जबकि कमलनाथ से जुड़े नेता छिंदवाड़ा में मोर्चा संभाल रहे हैं। दिग्विजय के करीबी भोपाल हैं। ऐसे में पंकज को स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ता की कमी खलेगी।
कार्यवाहक अध्यक्ष विनय बाकलीवाल और अध्यक्ष प्रमोद टंडन के बीच लंबे समय से कोल्ड वार जारी है। चुनाव की तैयारियों की बैठकों में भी यह खुलकर दिखी है। पंकज ने इन दोनों की दूरियों को कम नहीं किया तो उसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
महेश जोशी, कृपाशंकर शुक्ला, रामेश्वर पटेल जैसे कांग्रेस के पुराने नेता पंकज के चुनाव में सक्रिय नहीं है। प्रदेश मीडिया प्रभारी शोभा ओझा व केके मिश्रा प्रदेश कांग्रेस की अन्य जिम्मेदारियों के चलते लगातार अन्य शहरों के दौरों पर हैं।
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