नेक इरादों को ईश्वरीय शक्ति कहें या मानवीय मदद, सब मिलने लगती है। जहां चाह, वहां राह की तर्ज पर ऐसे ही समाजसेवियों ने जरूरतमंदों की मदद का बीड़ा उठाया है।
तय किया गया कि घर-घर से कबाड़ और रद्दी इकट्ठी करके उसे बेचें और फिर जो पैसा मिले, वह गरीबों के उत्थान पर खर्च करें। कुछ लोगों से बात की तो वे रद्दी व कबाड़ देने को राजी हो गए।
अब 100 घर ऐसे हैं, जहां से संस्था को नियमित रूप से सामग्री मिलती है। जो पैसा आता है, उससे गरीब बच्चों की स्कूल फीस, यूनिफॉर्म, स्टेशनरी भरने का काम संस्था कर रही है। सोनू व्यास, आलोक शर्मा और आकाश मेहता ने बताया कि हम रविवार को अलग-अलग समूह में कबाड़ और रद्दी इकट्ठा करने जाते हैं।
लक्ष्मीबाई अनाजमंडी के पास स्थित बस्ती के बच्चों को समय-समय पर स्टेशनरी उपलब्ध करवाई जाती है।
वृद्धाश्रम में बुजुर्गों के साथ मनाते हैं त्योहार।
पिछले दिनों आर्थिक रूप से कमजोर लडक़ी का एक्सीडेंट होने पर इलाज के लिए मदद की।
दो छात्राओं की पढ़ाई का पूरा खर्च संस्था उठा रही है।