बाग प्रिंट की कहानी बस इतनी नहीं की बस ब्लॉक यूज किया और हो गया काम। इस कला में बाग क्षेत्र की पूरी कहानी गढ़ी हुई है। इंदौर क्षेत्र के पास धार के बाग से शुरू हुई बाग प्रिंट की कला को बाग के खत्री परिवार ने शुरू की थी, जो आज भी चली आ रही है।
इंदौर. बाग कला में बाग क्षेत्र की मिट्टी, नदियों, वनस्पति, वन्य जीवन और जलवायु का असर साफ नजर आता है। जितना खूबसूरत यह दिखता है उतना ही मुश्किल है इसे बनाना। एक साड़ी या दुपट्टा तैयार होने में 20 दिन लग जाते हैं। कपड़े को कई बार पैरों से रौंदा और भट्टी में उबाला जाता है। धार के पास बाग में खत्री परिवार ने की थी।
खत्री परिवार की जड़ें पाकिस्तान में हैं। यह परिवार सिंध से मारवाड़ आकर बसा और फिर एमपी में बाघिनी नदी किनारे इसने ठिकाना बनाया। अपनी जिंदगी में आए उतार-चढ़ाव की ये कहानी बाग से आए कासिम खत्री ने साझा की। उन्होंने बताया कि 8 जनवरी 2016 की बात है। कारखाने से फोन आया कि कुछ लोग यहां आग लगा रहे हैं। हम पुलिस के साथ वहां पहुंचे तो पता चला कि सब भाग गए। हमारा आधा कारखाना जल गया था और समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या होगा। 40 लाख से ज्यादा का माल मिनटों में खाक हो गया। उस समय अगर हिम्मत हार जाते तो शायद अपने पुश्तैनी कारोबार को जिंदा नहीं रख पाते। आज बाग प्रिंट को दुनियाभर में पहचाल मिल चुकी है और लोग इसे काफी पसंद कर रहे हैं। हमारी तीसरी पीढ़ी कारोबार को आगे बढ़ा रही है।
7 सदस्य नवाजे गए राष्ट्रीय पुरस्कार से
कासिम ने बताया कि बाग प्रिंट हमारा खानदानी पेशा है। अब तक पूरे परिवार में सात सदस्यों को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। इस्माइल सुलेमान खत्री को बाग प्रिंट का जनक क हा जाता है। भाई अब्दुल कादर खत्री और मां हज्जानी जैतुन बी का नाम भी शामिल है।
भी-मंडी का कपड़ा करते हैं इस्तेमाल
महाराष्ट्र की भी-मंडी का कपड़ा सबसे उम्दा होता है बाग प्रिंटिंग के लिए। सबसे पहले कपड़ा पानी में रात भर गलाने के बाद सुबह कूटते, सुखाते हैं। संचरा, अरंडी के तेल, और गोट डंग (बकरी की लीद) का पेस्ट बना उसे पानी में घोलते हैं। कपड़ा इसमें भिगोते हैं, उसे फिर सुखाते हैं। फिर पानी में गलाकर कूटते हैं। यह प्रोसेस 3 बार करते हैं ताकि कपड़े का एक-एक रेशा पेस्ट वाला पानी सोख ले। कपड़े को पीलापन देने के लिए हरड़ और बाहेड़ा पाउडर के पानी में कपड़ा डालते हैं। 15 दिन सुखाने के बाद धवड़ी फूल और आल ट्री जड़ों के साथ तांबे के बड़े बर्तन में तीन घंटे उबालते हैं।
नेचरल प्रिंट है बाग
कासिम बताते हैं कि बाग प्रिंट मध्यप्रदेश का नेचरल प्रिंट है और इसे हाथों से प्रिंट किया जाता है। अनार के छिलके से हरा रंग, लोहे के जंग से काला व फिटकरी से लाल रंग तैयार होता है। इसमें बॉइङ्क्षलग प्रोसेस का यूज होता है। इसके बाद गुजरात में सबसे बढिय़ा वुडन ब्लॉक से प्रिंट किया जाता है। प्रिंटिंग के आठ से दस दिन बाद बहते हुए पानी में इसे धोया जाता है ताकि डिजाइन खराब न हो।
हरा रंग और बांस पर प्रिंट है लैटेस्ट ट्रेंड
बाग प्रिंट में इन दिनों गेंदा, कैरी, मक्खी, भिंडी, बारिक बूटों वाली डिजाइन पसंद की जा रही है। कॉटन सूट के साथ शिफॉन का दुपट्टा ट्रेंडी लुक देता है। इन दिनों सिल्क के कपड़े में बाग प्रिंट के साथ स्टाइलिश स्टॉलस पॉपुलर हो रहे हैं। ग्रीन रंग के अलग-अलग शेड्स सबसे ज्यादा पसंद किए जाते हैं। पर्दों और आसन में बांस की प्रिंट नया इनोवेशन है। ऐसा पहली बार है जब कपड़े की जगह बांस पर प्रिंट की गई है।
चीयों व फि टकरी से मिलता लाल रंग
हल्दी जैसा पीलापन लिए जो लाल रंग आप देखते हैं वो इमली के चीयों के पाउडर और फि टकरी घुले पानी में कपड़ा गलाने से मिलता है। काले रंग के लिए जंग लगो हुए लोहे के टुकड़ों और गुड़ में 15 दिन तक गलाकर रखते हैं कपड़ा।
ऐसे पहचानें असली और नकली
एक कपड़े को तीन बार धोया कूटा और सुखाश जाता है। कमर तक पानी में खड़े होकर इसे धोते हैं ताकि कपड़े पर एक्स्ट्रा रंग न रह जाए। असली बाग प्रिंट की पहचान उसमें कुछ कमियां हैं। परफेक्ट प्रिंटिंग मशीन वर्क की निशानी है।