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Teacher’s day : सम्मान की इंदौरी परंपरा, शिष्यों ने टीचर्स को तोहफे में दिए घर

locationइंदौरPublished: Sep 05, 2018 01:57:15 pm

Submitted by:

amit mandloi

गुरु-शिष्य की इस प्राचीन परंपरा को इंदौर ने अनूठा रूप दिया है।

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Teacher’s day : सम्मान की इंदौरी परंपरा, शिष्यों ने टीचर्स को तोहफे में दिए घर

इंदौर. गुर बिनु भवनिधि तरइ न कोई, जों बिरंचि संकर सम होई। तुलसीदास के इस दोहे का मतलब है… भले ही कोई ब्रह्मा, शंकर के समान क्यों न हो, वह गुरु के बिना भवसागर पार नहीं कर सकता। गुरु-शिष्य की इस प्राचीन परंपरा को इंदौर ने अनूठा रूप दिया है। उनके नि:स्वार्थ प्रेम और समर्पण के भाव का सम्मान करते हुए शिष्यों ने भी नई इबारत लिखी है। अपने टीचर्स को मकान तो फ्लैट तक गिफ्ट किए हैं।
58 साल से संजो रखी है गुरुदक्षिणा

सन् 1960 में स्व. सुखचंद जैन के साथ हुई एक घटना ने गुरु-शिष्य परंपरा में नया अध्याय लिखा है। 30 साल तक त्रिलोकचंद जैन हायर सेकेंडरी स्कूल के प्राचार्य रहे सुखचंद जैन के विदाई समारोह में वर्तमान के साथ भारी संख्या में भूतपूर्व छात्र भी शामिल हुए। इस समय जैन साउथ राजमोहल्ला में अपना मकान निर्माण करवा रहे थे। छात्रों ने भी सहयोग के लिए सवा लाख रुपए जुटा लिए, जो तब बड़ी राशि होती थी। इसी की मदद से उन्होंने अपने दो मंजिला मकान का निर्माण पूरा किया। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। सुखचंद ने छात्रों के इस उपहार को यादगार बनाने के लिए मकान पर बड़े अक्षरों में गिफ्ट लिखवाया, जो आज भी कायम है। यहां उनके बेटे सतीश जैन परिवार के साथ रहते हैं। राशि जुटाने वालों में शामिल भूतपूर्व छात्र रवि गंगवाल बताते हैं, उनका स्कूल डेली कॉलेज के बाद अशासकीय स्कूलों में शहर का सबसे पुराना स्कूल है। यहां से शासन-प्रशासन की कई नामचीन हस्तियां पढक़र निकली हैं। जैन को शिक्षा में योगदान के लिए 1961 में तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा था। गंगवाल इस स्कूल में 34 साल तक प्रिंसिपल और तीन साल तक डायरेक्टर रहे। उन्होंने बताया, अब ऐसे परंपरा नहीं दिखती है।
खेलने ऑस्ट्रेलिया भेजा, फ्लैट भी दिलाया

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किशन ओझा नाम हर किसी की जुबां पर नहीं है, लेकिन उनका खेलों के प्रति योगदान अन्य खिलाडिय़ों की तुलना में महान जरूर बनाता है। बैडमिंटन के प्रति जज्बे के कारण 83 साल की उम्र में भी शिष्यों को नि:शुल्क बैडमिंटन सिखा रहे हैं। उनके जीवन में शिष्यों की भूमिका भी काफी अहम रही है। साल 2000 में ऑस्ट्रेलिया में 60 प्लस बैडमिंटन कॉम्पीटिशन में आर्थिक कारणों से वे नहीं जा पा रहे थे। शिष्यों ने पैसा जुटाकर उन्हें हिस्सा लेने भेजा। ओझा ने यहां शानदार खेल दिखाते हुए सिंगल्स में गोल्ड, डबल्स में सिल्वर और मिक्स्ड डबल्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता। ऐसा एक वाकया 2010 में भी हुआ। किशन बताते हैं, मेरा पुराना मकान टूट रहा था, इसलिए छात्रों से कहा कोई दूसरा मकान ढूंढना है। उन्होंने बिना मुझे बताए राशि जुटाना शुरू कर दी। दुबई में रहने वाले एक भूतपूर्व शिष्य की मदद से पैसे एकत्रित किए। सभी ने गोयल नगर में मुझे दो बेडरूम का फ्लैट दिला दिया। किशन ५० साल से नेहरू स्टेडियम में नि:शुल्क बैडमिंटन सिखा रहे हैं। फुटबॉल खिलाड़ी किशन को बैडमिंटन में लाने का श्रेय कृष्णगोपाल खंडेलवाल को जाता है। किशन बताते हैं, उन्हें एक गुरुमंत्र मिला- शटर कभी भी अपनी साइड नहीं गिरे। इसी मंत्र को अपने शिष्यों तक पहुंचा रहा हूं।
तीसरी पीढ़ी के फुटबॉलर कर रहे तैयार

बीते 50 वर्षों से रामदास चौहान (आरडी) 82 महू शहर में फुटबॉलर तैयार कर रहे हैं। उम्र के इस पड़ाव के बावजूद चुस्त व दुरुस्त हैं और मैदान पर नौजवानों को फुटबॉल की कोचिंग दे रहे हैं। यंग ब्रदर्स क्लब के माध्यम से वे तीसरी पीढ़ी के लिए फुटबॉल शिक्षक की भूमिका निभा रहे हैं। उनके प्रशिक्षित 100 खिलाडिय़ों की स्पोटर््स कोटे में रेलवे, आर्मी, कस्टम, एलआईसी में नौकरी लग चुकी है। रेलवे में चीफ टिकट कलेक्टर की पोस्ट से रिटायर्ड हुए आरडी चौहान का कहना है कि सिर्फ फुटबॉल का ही प्रशिक्षण नहीं देता हूं बल्कि खिलाडिय़ों को अनुशासन, सीनियर्स का सम्मान व संस्कार भी सिखाए जाते हैं। सभी खिलाडिय़ों को यह भी नियमित रूप से याद दिलाता हूं कि खेल के साथ शिक्षा भी बहुत जरूरी है, दोनों के तालमेल से ही सफलता मिलेगी। उनसे फुटबॉल के गुर सीखे मनोज श्रीवास्तव खेल कोटे में कस्टम विभाग में लगे और असिस्टेंट कमिशनर कस्टम के पद से सेवानिवृत्त हुए। खिलाडिय़ों में उनके प्रति विशेष आदर व सम्मान है। उन्होंने बताया आज तक किसी भी खिलाड़ी से कोई शुल्क नहीं लिया।
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