script….किसने किया सड़क का भूमिपूजन, गरमाई भाजपा की राजनीति | Then heats up four number of BJP politics | Patrika News

….किसने किया सड़क का भूमिपूजन, गरमाई भाजपा की राजनीति

locationइंदौरPublished: Apr 21, 2018 10:36:23 am

Submitted by:

Mohit Panchal

क्षेत्र-4 में बन रहे नए राजनीतिक समीकरण, विरोधी खेमा नाराज

eklaviya gour
इंदौर। भाजपा हमेशा कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाती रही है, लेकिन अब वह भी इसी राह पर चल पड़ी है। विधायक मालिनी गौड़ के महापौर बनने के बाद से अब तक बेटे हिंदरक्षक व क्षेत्र में संगठन का काम देख रहे हैं। बात एक कदम आगे बढ़कर विधायक निधि से बनने वाली सड़क के भूमिपूजन तक पहुंच गई है।
भाजपा के कई दिग्गज नेताओं ने खुलकर मंच से कई बार आरोप लगाए कि कांग्रेस में परिवारवाद है, लेकिन अब भाजपा भी परिवारवाद से अछूती नहीं है। चार नंबर भाजपा की राजनीति गरम है। शिक्षा मंत्री रहे लक्ष्मणसिंह गौड़ के निधन के बाद पार्टी ने मालिनी गौड़ को चुनाव लड़ा दिया।
दो बार से वह विधायक हैं और साढ़े तीन साल से महापौर। अब तक उनकी अनुपस्थिति में हिंद रक्षक संगठन और क्षेत्र में पार्टी का काम उनके बेटे एकलव्य सिंह गौड़ संभाल रहे हैं। युवाओं में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए पिछले साल से क्रिकेट टूर्नामेंट भी कराना शुरू किया है। बात यहां तक भी ठीक थी, लेकिन आज एकलव्य के हाथों विधायक निधि से बनने वाली सड़क का भूमिपूजन होने जा रहा है। ये सड़क ग्वाला कॉलोनी से श्रीराम टेकरी के बीच बनाई जाएगी। बकायदा मंडल अध्यक्ष महेश कुकरेजा ने कार्यकर्ताओं को न्योता भी बांटा है।
यह जानकारी मिलने के बाद से चार नंबर भाजपाइयों में हलचल मची हुई है। विरोधी खेमा सवाल उठा रहा है कि विधायक निधि के काम का भूमि पूजन हिंदरक्षक संगठन के संयोजक कैसे कर सकते हैं? इस मुद्दे को लेकर संगठन के कुछ शीर्ष नेताओं को शिकायत की जा रही है। इधर, चर्चा है कि गादी संभालने के लिए ‘युवराजÓ तैयार हो गए हैं।
बुजुर्ग कार्यकर्ता भी कर रहे दादा-दादा
घर की रोटी और जेब के चने खाकर भाजपा को खड़ा करने वाले कार्यकर्ताओं का भी अब स्वरूप बदल गया है। पराक्रम की बजाए कार्यकर्ता परिक्रमा पर जोर दे रहा है। चार नंबर विधानसभा में तो चापलूसी की भी इंतेहा हो रही है। अधेड़ उम्र के कार्यकर्ता भी अब एकलव्य को दादा बोल रहे हैं। पहले ये संबोधन लक्ष्मणसिंह गौड़ के लिए उनके साथी और युवा कार्यकर्ता करते थे। समर्थकों का तर्क है कि एकलव्य में लखन दादा की झलक दिखाई देती है।
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