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MOTHER’S DAY : इन शिक्षिकाओं ने अपनी आमदनी से भरी बच्चों की फीस, भविष्य को दे रहीं दिशा

locationइंदौरPublished: May 12, 2019 02:00:41 pm

मौज-मस्ती और खेल-खेल में सिखातीं गणित

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MOTHER’S DAY : इन शिक्षिकाओं ने अपनी आमदनी से भरी बच्चों की फीस, भविष्य को दे रहीं दिशा

इंदौर. ऐसी नारी शक्ति जिसने अपना बचपन संघर्षों से शुरू किया और अपनी बच्ची में भी जुझारूपन नैसर्गिक रूप में डाला। गणित की शिक्षिका हैं। विद्यालयीन समय में स्कूली बच्चों के मध्य माता की तरह मौज-मस्ती और खेल-खेल में गणित सिखाने की अनुपम कला है।
मैदान में ज्यॉमितीय आकृति से कब कक्षा दसवीं के बच्चे हल सीख गए मालूम ही नहीं होता। विद्यालय की लड़कियों के लिए अच्छी गुरु के साथ माता, अच्छी दोस्त और परिवार की सदस्य बनकर शिक्षा के साथ ही वह प्यार भी देती हैं, जो बच्चों को घर में मा से मिलता है। बच्चों के पास फीस भरने का पैसा न हो तो अपनी कमाई से भर देती हैं। हासलपुर के शासकीय स्कूल की शिल्पी शिवान यशोदा की तरह स्कूल समय में बच्चों को जहां दुलार देती हैं, वहीं अनुशासन को लेकर काफी सख्त भी हैं। इससे बच्चों की पढ़ाई में सुधार के साथ व्यवहार में भी काफी परिवर्तन आया।
कई बड़े स्कूलों में भी आया मदर टीचर का पैटर्न, छोटे बच्चों को मां बनकर दे रहीं शिक्षा

देवकी के पुत्र को यशोदा ने पाला और एक मां की तरह बड़ा किया। शहर में ऐसी कई शिक्षिकाएं या मां हैं जो यशोदा बनकर गरीब बच्चों का सहारा बन रही हैं या स्कूल के शिष्यों को मां के रूप में हरसंभव मदद कर आगे बढऩे के लिए सहारा बन रही हैं। पत्रिका ने ऐसी यशोदा माता को तलाशा। शहर में कई निजी स्कूलों में अब मदर टीचर का पैटर्न ही आ गया है। पहली से पांचवीं कक्षा तक एक ही मदर टीचर बच्चों को पारिवारिक माहौल में वह सब सिखाती है जो मां अपने बच्चों को घर में सिखाती है। बच्चे भी टीचर को इतना मानते हैं कि परिवार तक को टीचर के कहे अनुसार चलने की शिक्षा देते हैं।
शिक्षा के साथ हरसंभव सहयोग

संजय स्पंदन संस्था से जुड़ी लिली डावर दिव्यांग बच्चों, गरीब, मजदूर व कैदियों के बच्चों की शिक्षा, संस्कार और पोषण के लिए कार्य कर रही हैं। ग्राम पेड़मी के शासकीय स्कूल में प्राचार्य डावर मां की तरह बच्चों को अपना बनाने के साथ स्कूल का जरूरत का सामान तो उपलब्ध करवाती ही हैं। बच्चों के जन्मदिन मनाने के साथ उन्हें समय-समय पर उपहार भी देती हैं। खुद की आमदनी का बड़ा हिस्सा वे इस कार्य पर खर्च करती हैं। प्राचार्या लिली डावर का एक ही नारा है- हर जरूरतमंद मेरा बच्चा।
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बच्चों की बहुमुखी प्रतिभा उभारने का प्रयास

शासकीय उत्कृष्ट उमा विद्यालय देपालपुर में प्राचार्य वंदना श्रीवास्तव ने पूरे स्कूल के बच्चों को मां का प्यार देने की ठान ली है। उनकी परेशानियों का निराकरण निजी तौर पर करने का प्रयास करती हैं। छात्र भी उन्हें मां की तरह प्यार करते हैं और मॉम्स पुकारते हैं। बच्चों की फीस से लेकर घर तक की परेशानियों को हल करने का प्रयास करती हैं। छात्रों की गतिविधियों में साथ में भाग लेने के साथ ही उन्हें अच्छे से जानना उनकी विशेष कला है। वे बताती हैं, जिस बच्चे की जिस क्षेत्र में रुचि होती है या प्रतिभाशाली होते हैं, उनकी पुचि के हिसाब से ही प्रतिभा निखारने में सहायता करती हैं। शिक्षा के साथ ही बच्चों के विकास और प्रतिभा को उभारने और निखारने के लिए घर-परिवार तक पहुंच जाती हैं। परिवार की परेशानी हल करने के साथ अपनी आय का बड़ा हिस्सा ऐसे गरीब बच्चों या परिवार पर खर्च करती हैं।

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