16 थर्ड एसी, दो जनरेटर और एक पेंट्री के हमसफर रैक में कुल 1152 सीटें हैं। इंदौर से लिंगमपल्ली तक पूरी सीटें भरी होने पर रेलवे के खाते में 21 लाख 42 हजार 720 रुपए आते हैं जबकि यह लागत का 60 से 70 फीसदी ही भरपाई करते हैं। आज रवाना हुई हमसफर में बी 13 और बी 15 में एक भी यात्री नहीं है। बी 1 में 2, बी 10 में 1, बी 12 में 1 और बी 14 में 1 ही यात्री है, जबकि जनरल कोच में भी नाममात्र के यात्री हैं। इंदौर से सूरत तक के कोटे में 1152 सीटों में से 974 बर्थ खाली है। इंदौर से करीब 30 यात्री ही सफर कर रहे हैं, जो कि अलग-अलग स्टेशन पर उतर जाएंगे।
रेलवे पर खड़े हुए सवाल… किसी भी यात्री ट्रेन को शुरू करने से पहले रेलवे द्वारा सर्वे किया जाता है। सर्वे रिपोर्ट पास होने के बाद ही ट्रेन संचालन की प्रक्रिया शुरू होती है, लेकिन इस ट्रेन के मामले में रेलवे का सर्वे फेल हो गया या रेलवे ने सर्वे के नाम पर खानापूर्ति कर ली।
ऐसे मिल सकते हैं रेल को यात्री यह ट्रेन रतलाम, वरोडरा, सूरत, पूणे होते हुए जाती है। अगर ट्रेन को सुबह की जगह रात 8 बजे के बाद चलाया जाए तो 60 फीसदी से अधिक यात्री मिल जाएंगे। इसके साथ फेयर भी कम करना होगा, ताकि स्लीपर कोच में सफर करने वाले यात्री भी इसमें सफर कर सके।
डबल डेकर जैसे हाल सितंबर 2013 में शुरू हुई इंदौर-हबीबगंज डबल डेकर ट्रेन का समय और किराया अधिक होने के कारण 2015 में बंद कर दिया गया था। 40 हजार पेंट्री किराया
हमसफर ट्रेन में जो पेंट्री कार संचालित की जा रही है, उसकी प्रतिदिन की फीस 40 हजार रुपए है जबकि नाममात्र के यात्री की सफर कर रहे हैं। ऐसे में कंपनी भी पेंट्री कार का ठेका छोडऩे की तैयारी में है। अगर ऐसा होता है तो हमसफर से पेंट्रीकार की सेवा भी खत्म हो जाएगी।