किसी भी अपराध में सजा मिलने की 2 साल बाद कोई भी कैदी दी नियमित पैरोंल का हकदार हो जाता था। विचाराधीन अवधि के दौरान अगर उसने जेल में रहते हुए कोई अपराध किया है तो फिर सजा मिलने पर आजीवन पैरोल का हकदार नहीं रहता था।इसके अलावा सजा काटने के दौरान जेल के अंदर रहकर भी कोई अपराध करने पर उसकी पैरोल रुक जाती थी। वह सजा मिलने के तीन साल तक फिर पैरोल के लिए पात्र नहीं रहता। लेकिन अब यह नियम बदल दिया गया।
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मानवीय आधार सरकार ने गयह पहल की है। विचाराधीन अवधि के दौरान जेल में हंगामा करने या कोई और अपराध करने पर सजा मिलने के तीन साल बाद वह सामान्य और आपात पैरोल का पात्र हो जाएगा। वहीं सजा के दौरान जेल अपराध करने पर तीन वर्ष के लगने वाले प्रतिबंध को अब एक वर्ष का कर दिया गया है। दोनों ही संशोधनों का गजट नोटिफिकेशन भी शासन के द्वारा जारी कर दिया गया ।
फायदे तो नुकसान भी
इस संशोधन से उन कैदियों को जरूर फायदा होगा जो कि छोटी मोटी गलती के कारण पैरोल बंद होने की सजा भुगते, लेकिन इसके साथ ही उसका नुकसान भी देखने को मिलेगा। कैदियों में पैरोल रुकने का जो डर था वह खत्म हो सकता है। सजा के दौरान कैदियों के द्वारा जेल अपराध किए जाने की संभावना बढ़ जाएगी।
मानवीय आधार पर किये गए संशोधन
डीजी जेल अरविंद कुमार ने बताया कि जेल में आने के बाद कई बार कैदी कोई अपराध कर बैठते थे। ऐसे में उन पर आजीवन और 3 साल तक पैरोल नहीं दिए जाने का प्रतिबंध लग जाता था। कई बार छोटे-मोटे मामलों में भी इस तरह की गंभीर सजा मिल जाती थी। मानवीय आधार को देखते हुए इस नियम में संशोधन के लिए शासन से निवेदन किया गया था। इस पर आजीवन प्रतिबंध को घटाकर 3 वर्ष और 3 वर्ष के प्रतिबंध को घटाकर 1 वर्ष कर दिया गया।