दो रास्ते, दोनों जर्जर: इस अंधेरी राह पर जाने से कतराते हैं लोग
स्वच्छता का ढिंढोरा पीट रहे शहर के पालदा क्षेत्र में मूलभूत सुविधाएं ही नहीं

इंदौर. शहर स्वच्छता में नंबर वन है। स्मार्ट सिटी के लिए भी शहर का चयन हुआ, आईटी सिटी का भी दंभ भर रहे हैं। इन सबसे इतना जरूर हुआ कि मध्य शहर की कुछ सडक़ें चकाचक नजर आ रही हैं, लेकिन शहर के आसपास के अनेक रहवासी इलाकों की हालात आज भी दयनीय है। पालदा को नगर निगम में आए सालों हो गए।
इस क्षेत्र में बसे शिव-पार्वती नगर ने निगम के वार्ड ७५ का हिस्सा बनकर पार्षद भी चुन लिया। नतीजा सिफर रहा। यहां के 900 से ज्यादा परिवार साल भर पीने के पानी के लिए भटकते हैं। सडक़ों की हालत एेसी है कि बारिश में यहां पहुंचना मुश्किल होता है। बिजली जब तक है, तब तक उजाला, चली गई तो दो-तीन दिन जब बिजली विभाग की मर्जी होगी, तब उजाला होता है। जनप्रतिनिधि सिर्फ नारियल फोडऩे तक ही सीमित रहते हैं। हमारी आवाज कौन सुनेगा? बीते पांच साल में यहां न सांसद पहुंचीं, न विधायक पहुंचे और न ही मंत्री। पार्षद भी यदाकदा ही पहुंचती हैं। पत्रिका ने जब पालदा गांव क्षेत्र में बसे शिव-पार्वती नगर का जायजा लिया तो वहां के लोगों का यह दर्द सामने आया। खंडवा रोड, बायपास के बीच में बसी शिव-पार्वती नगर नाम की इस कॉलोनी की समस्या एक नहीं है। यहां पहुंचना तो आसान है ही नहीं, रात में भी सिर्फ घरों की लाइट ही रौशन होती है। गलियां अंधेरे में डूबी रहती हैं, आवाजाही का रास्ता भी अंधेरे में रहता है। पानी की स्थिति यह है कि एक ही बोरिंग के भरोसे पूरी कॉलोनी के घर हैं।
17 साल पहले खेत काटकर बसाई थी कॉलोनी
रहवासियों का कहना है, 17 साल पहले खेत काटकर कॉलोनी बसाई गई थी। चार-पांच साल से यहां बस्ती हो गई। तेजी से मकान बने और लोग रहने आए। पहले तो यह पंचायत में थी। तब रहवासी अधिक नहीं थे, जब से निगम में आई, यहां मकान बनना तेजी से शुरू हुआ। लोगों का कहना है, यहां की सबसे बड़ी मुश्किल निगम अधिकारियों की अनदेखी है। शहर से बाहर की इस कॉलोनी की विडंबना है कि इसका विकास किसी की प्राथमिकता में नहीं है। निगम की कचरा गाड़ी आती है, पानी की किल्लत मंे टैंकर नहीं आता। बारिश में कॉलोनी की सडक़ों पर आसपास के नालों का पानी भर जाता है।
पहुंचना टेढ़ी खीर
पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक तेजाजी चौक पालदा के समीप से, दूसरा खंडवा नाका, राधा स्वामी सत्संग परिसर के समीप से, लेकिन दोनों से यहां पहुंचना टेढ़ी खीर है। बारिश व रात में मुश्किल आती है। कॉलोनी के लोग कहते हैं, अफसर कब तक कागजों पर नपती लेते रहेंगे। सडक़ों के लिए पांच-पांच हजार या सीमेंट लाकर देने की बात कही जा रही है।
पीने का पानी मिल जाए वही बहुत है
रहवासी रानी विश्वकर्मा का कहना है कि पानी व सडक़ की बड़ी समस्या है। बोरिंग का पानी आता है। गर्मी में तो मुश्किल होती है। आने-जाने की भी तकलीफ है।
सुन रहे हैं, सडक़ बनेगी
मांगीलाल बर्फा का कहना है, बारिश में तो तीनों ही रास्ते बंद हो जाते हैं। नाले में पानी आने से सडक़ पर कीचड़ हो जाता है। सरकार को एक तरफ किधर से भी कनेक्टिविटी देनी होगी। हमरी कौन सुनेगा? जब आसपास की खेती की जमीन पर कॉलोनियां कट जाएंगी तक सडक़ बनेगी, क्योंकि सरकार बड़ों की तकलीफ देखती है, गरीबों की नहीं।
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