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दृष्टिहीन शिक्षक का दर्द : चढऩे-उतरने में लगता है समय इसलिए नहीं बैठाते बस वाले, देखें VIDEO

locationइंदौरPublished: Oct 15, 2019 01:42:30 pm

Submitted by:

Manish Yadav

मजबूरन पैदल ही करना पड़ रहा स्कूल तक आना-जाना
बस संचालकों के रवैये से दु:खी होकर एसडीएम को लिखा पत्र
white cane safety day आज

दृष्टिहीन शिक्षक का दर्द : चढऩे-उतरने में लगता है समय इसलिए नहीं बैठाते बस वाले!

दृष्टिहीन शिक्षक का दर्द : चढऩे-उतरने में लगता है समय इसलिए नहीं बैठाते बस वाले!

मनीष यादव @ इंदौर. उपनगरीय बस संचालकों की अमानवीयता व असहाय की मदद से इनकार करने का एक ऐसा मामला सामने आया है, जो शर्मसार तो करता ही है, साथ ही बताता है कि उनमें जरा भी इंसानियत नहीं है। सिर्फ कमाई ही उनका एकमात्र मकसद है। एक दृष्टिहीन शिक्षक वर्षों से इन बसवालों की उपेक्षा-बेदर्दी व मनमानी का शिकार हो रहा है। 
ये बस वाले इस शिक्षक को पूरा किराया देने के बावजूद नहीं बैठाते, कारण जानकर आप हैरान रह जाएंगे… क्योंकि नाबीना शिक्षक को बस में चढऩे-उतरने व बैठने में थोड़ा समय लगता है, बस यही बस वालों की आंखों में खटकता है। आज व्हाइट कैन सेफ्टी-डे है। यह उन लोगों की उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए निर्धारित किया गया है, जो दृष्टिहीन हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 1964 से प्रत्येक वर्ष 15 अक्टूबर को मनाने की शुरुआत की।
दृष्टिहीन शिक्षक का दर्द : चढऩे-उतरने में लगता है समय इसलिए नहीं बैठाते बस वाले!
कहते हैं कि ईश्वर किसी को कोई शारीरिक कमी देता है तो उसे एक अतिरिक्त गुण या ताकत भी देता है। ऐसे ही एक शिक्षक हैं राजेश जायसवाल, वे देपालपुर तहसील में आने वाले ग्राम तकीपुरा के प्राथमिक स्कूल में पढ़ाते हैं। जन्मजात दृष्टिहीन हैं। जरा भी दिखाई नहीं देता। इसके बाद भी उन्होंने अपनी इस शारीरिक कमजोरी को कभी अपने इरादों, सपनों के आगे आड़े नहीं आने दिया और न सिर्फ खुद पढ़े-लिखे बल्कि अब शिक्षक बन कर बच्चों को भी पढ़ा रहे हैं। वे 11 साल से यहां पढ़ा रहे हैं।
पूरा किराया देने के बाद भी

राजेश ने बताया कि अंधत्व के चलते उन्हें बस में चढऩे-उतरने व बैठने में थोड़ा समय लग जाता है। इस कारण इस रूट की बस वाले उन्हें नहीं बिठाते। उन्हें सडक़ तक छोडऩे आए बच्चों के हाथ हिलाने पर भी कोई बस रोकता नहीं, अगर उनके साथ अन्य सवारी खड़ी देखकर रोक भी ले तो जगह नहीं होने का बहाना बनाकर उन्हें नहीं बिठाते। राजेश दूसरे यात्रियों की तरह ही पूरा किराया भी देने को तैयार हैं, फिर भी उन्हें बस में जगह नहीं मिलती।
दृष्टिहीन शिक्षक का दर्द : चढऩे-उतरने में लगता है समय इसलिए नहीं बैठाते बस वाले!
इंदौर छोड़ा, देपालपुर में बसे
राजेश ने बताया कि वो पहले इंदौर में रहते थे, लेकिन आने-जाने में परेशानी को देखते हुए देपालपुर में ही मकान लेकर रहने लगे। यहां से भी स्कूल दूर है। स्कूल के सामने से ही उप नगरीय बसें गुजरती हैं, लेकिन कोई भी उन्हें बिठाना पसंद नहीं करता। इस कारण वे घर से स्कूल तक पैदल जाते हैं। पत्नी भी दिव्यांग है। वह मेन रोड तक छोड़ देती है। इसके बाद किसी ग्रामीण या साथी शिक्षक का उस और से निकलना हो जाए तो वे स्कूल तक ले जाते हैं, नहीं तो पैदल ही आना-जाना पड़ता है। कई बार उनकी स्कूल के छात्र मदद कर देते हैं। साथी शिक्षकों की मानें तो इतनी परेशानी के बाद भी वे प्रतिदिन पढ़ाने आते हैं।
देरी पर वेतन काटने का आदेश
बस वालों के व्यवहार से दु:खी राजेश सुबह जल्दी स्कूल के लिए निकल जाते हैं। कई बार मदद नहीं मिल पाती और पैदल ही जाना पड़ता है, ऐसे में देरी होने पर तनख्वाह काटने का आदेश अफसरों ने दिया था। इस आदेश पर पुनर्विचार और अपनी समस्या को दूर करने के लिए उन्होंने क्षेत्रीय एसडीएम को पत्र लिखा है।
खुद ने बनाया चार्ट
राजेश ब्रेल लिपि में पढ़ते हैं, लेकिन बच्चों के लिए घर पर एक चार्ट तैयार किया है। इस चार्ट में हिन्दी, अंग्रेजी अक्षर और गणित के अंक लिखे हैं। उनके नीचे ब्रेल लिपि के शब्द बना रखे हैं। बच्चे शब्द और अंक देखकर पढ़ते है, जबकि राजेश ब्रेल लिपि की मदद से बच्चों को पढ़ाने के साथ ही वे ठीक से पढ़ रहे हैं या नहीं, यह भी चेक कर लेते हैं।
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