हाल ही में शहर के आईटी प्रोफेशनल्स पर किए गए सर्वे के मुताबिक 30 परसेंट वर्किंग प्रोफेशनल्स वर्कप्लेस के कारण डिप्रेशन, स्ट्रेस और नींद नहीं आना जैसी मेंटल डिसीज की गिरफ्त में है। 24 परसेंट ऐसे सिरदर्द से परेशान है जिसके लिए उन्हें डॉक्टर या मेडिसिन की हेल्प लेनी पड़ती है। 28 परसेंट एम्प्लॉय 6 घंटे से भी कम सो पाते हैं। वहीं स्मोकिंग करने वाले 43 परसेंट प्रोफेशनल्स ने माना कि वह वर्कप्लेस के स्ट्रेस को कम करने के लिए सिगरेट पीते हैं। इतने ही लोगों का कहना है कि उनके पसर्नल रिलेशनशिप वर्कप्लेस के स्ट्रेस के कारण खराब हो रहे हैं। डॉ. पवन राठी ने बताया कि सर्वे में सामने आया कि प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले 40-45 परसेंट एम्प्लॉय या तो डिप्रेशन में हैं या जनरल एंजाइटी डिसऑर्डर है। पिछले 8 साल में कार्पोरेट एम्प्लॉय में 50 परसेंट की ग्रोथ देखने को मिली है।
डॉ. राठी ने बताया कि काम के दौरान थोड़ा सा रिलैक्स करना मेंटल हेल्थ के लिए अच्छा माना जाता है और इससे प्रोडक्टिविटी भी इंक्रीज होती है। रिलैक्स करने के लिए एरोमा थैरेपी, मसाज, ब्रिदिंग एक्सरसाइज का यूज किया जा सकता है। इसके अलावा स्ट्रेस को रिलीज करने के लिए एरोबिक्स भी कर सकते हैं। इसके साथ ही काम शुरू करने से पहले 10 मिनट का टाइमर लगाएं और अपनी उस दिन की टू डू लिस्ट बनाकर प्रायोरिटी लिस्ट बनाएं। डेस्क पर बैठे हुए धीमे गर्दन रोल करें। स्क्रिन को लगातार देखने के बजाए थोड़ी देर आंखें बंद कर रिलैक्स करें। इसके साथ ही म्यूजिकल ब्रेक भी ले सकते हैं।
डिमांड : वर्क डिमांड या वर्क लोड बढऩा।
सपोर्ट : साथियों से पर्याप्त समर्थन नहीं मिलना।
रोल : काम-जिम्मेदारियों पर कन्फ्यूजन।
कंट्रोल : काम के तरीकों को पर कंट्रोल नहीं।
रिलेशन : वर्कप्लेस पर बुलिंग का शिकार होना।
चेंज : ऑर्गनाइजेशन में होने वाले चेंज में शामिल नहीं किया जाना