राइट टू हैल्थ के लिए सरकार 11 सदस्यीय कमेटी का गठन कर चुकी है। ये कमेटी ड्राफ्ट तैयार करने के लिए अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर सुझाव ले रही है। इंदौर में ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में हुई कार्यशाला में स्वास्थ्य विभाग की वंदना खरे व राजश्री बजाज ने बताया कि सभी प्रतिभागियों से लिखित सुझाव भी आमंत्रित किए गए। कार्यक्रम में वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर ने कहा कि आज के समय में मजबूत कानून की जरूरत है। सरकार को इसी दिशा में मजबूत कानून पारित करना चाहिए। वरिष्ठ चिकित्सक डॉ.भरत छपरवाल ने स्वास्थ्य अधिकार कानून का समर्थन करते हुए कहा कि स्वास्थ्य के लिए एक अच्छा कानून ही जनता को स्वास्थ्य सेवा दे सकता है। वर्तमान में जो बीमा आधारित स्वास्थ्य सेवा दी जा रही है मैं उसका विरोध करता हूं। सरकार को ही ईलाज का जिम्मा उठाना चाहिए।
नीति नहीं कानून की जरूरत एमजीएम मेडिकल कॉलेज की डीन डॉ.ज्योति बिंदल ने कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार कानून को लागू करने के लिए स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ बाकी विभागों का सहयोग और आपसी सामंजस्य जरूरी है। उन्होंने मोहल्ला क्लिनिक जैसे प्रारूप को लागू करने की वकालात की। डॉ.सविता इनामदार ने कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार सिर्फ नीति न होकर एक कानून हो। क्योंकि नीति तो कई बनती है लेकिन इनका पालन नहीं हो पाता। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के डॉ.दीलिप आचार्य का कहना था कि स्वास्थ्य सुधार के तमाम प्रयासों के बीच हमें तंबाकू प्रतिबंध के संबंध में भी विचार करना चाहिए। स्वास्थ्य विशेषज्ञ अमूल्य निधी ने बताया, सरकार को इस कानून में होने वाले प्रावधानों के बारे में सुझाव चार महीने पहले दिए थे। मुख्य रूप से स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला कारक जैसे पानी, पर्यावरण, सामाजिक सुरक्षा आदि को सुनिश्चित किया जाएं। गुणवत्ता पूर्ण व सभी के लिए वहनशील स्वास्थ्य सेवा व गरीबों के लिए मुफ्त सेवा स्वास्थ्य अधिकार कानून लाकर दी जाएं। जनस्वास्थ्य अभियान में विस्तृत सुझाव सरकार को दिए है। एडवोकेट अनिल त्रिवेदी ने कहा, संविधान की मूल भावना में इज्जत से जीने का अधिकार है। इसी के अंतर्गत राइट टू हैल्थ लाना चाहिए। डॉ.सुमित शुक्ला का कहना था कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर थाईलैंड जैसे देशों का मॉडल अध्ययन कर सरकार कानून ला रही है। ऐसे मॉडल अपनाए जाना चाहिए। सामाजिक कार्यकर्ता राकेश चांदौरे, सिलिकोसिस पीडि़त संघ के दिनेश रायसिंह, मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन के डॉ.माधव हसानी, पर्यावरण स्वास्थ्य विशेषज्ञ शमारुख धारा ने भी विचार रखे।