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‘बेटी को कैंसर का पता न चले इसीलिए छोटे कर लिए बाल, वो बोली- मां बहुत सुंदर लग रही हो, मेरी आंखें भर आईं’

locationइंदौरPublished: Feb 04, 2020 01:08:25 pm

कैंसर की कालिमा को चीर कर फिर उठ खड़े हुए ये फाइटर्स

'बेटी को पता न चले इसीलिए छोटे कर लिए बाल, वो बोली- मां बहुत सुंदर लग रही हो, मेरी आंखें भर आईं'

‘बेटी को पता न चले इसीलिए छोटे कर लिए बाल, वो बोली- मां बहुत सुंदर लग रही हो, मेरी आंखें भर आईं’

इंदौर. कैंसर यानी हंसती-खेलती जिंदगी पर मौत का साया मंडराना। जब किसी को इस बीमारी का पता चलता है तो ऐसा लगता है मानो उसके पूरे संसार को कालिमा ने घेर लिया हो। घोर निराशा की इस स्थिति में सिर्फ जीजीविषा ही इस बीमारी से पीडि़त व्यक्ति को लडऩे और दर्द सहने की ताकत देती है। मंगलवार को विश्व कैंसर दिवस के अवसर पर हम आपको बता रहे हैं ऐसे कुछ योद्धाओं के चंद अनुभव जिन्होंने अपनी जीवन नैया को पूरी ताकत से खेते हुए कैंसर रूपी भंवर से न सिर्फ खुद को उबारा बल्कि दूसरों के लिए भी संघर्ष की मिसाल बने।
बेटी बोली- मां बाल तो फिर आ जाएंगे तो मेरी आंखें भर आई

– पल्लवी जायसवाल वर्मा (40), ब्रेस्ट कैंसर सर्वाइवर

'बेटी को पता न चले इसीलिए छोटे कर लिए बाल, वो बोली- मां बहुत सुंदर लग रही हो, मेरी आंखें भर आईं'
दिसंबर 2016 में पता चला था कि मुझे ब्रेस्ट कैंसर है। यह सुनकर ही मुझे लगा था कि सब खत्म हो गया है। पूरा परिवार टूट गया था। उस वक्त उनके उदास चेहरों को देखकर मैंने तय कि हिम्मत नहीं हारना है। मेरी ताकत थी मेरी सात साल की बेटी। मैं नहीं चाहती थी कि उस पर मेरी बीमारी का कोई असर हो। मेरे बाल बहुत बड़े और सुंदर थे। मुझे पता था कि कीमो के वक्त मेरे बाल चले जाएंगे। बेटी को कुछ पता न चले, इसलिए मैंने शॉर्ट हेयरकट करवा लिए थे। इतना ही नहीं हमेशा सिर पर कैप पहनकर रखती थी। एक दिन बेटी ने मुझे बिना बालों के देखा और क हा, आपने लुक चेंज किया है इसमें भी सुंदर लग रही हो। बालों का क्या है फिर से आ जाएंगे। उस दिन मेरी आंखें भर आई थी। ट्रीटमेंट के दौरान कभी-कभी ऐसा लगता था कि हर एक नस में दर्द हो रहा है। खाना सामने आता तो चिड़ होने लगती थी। उस वक्त परिवार ताकत बढ़ाता था। आज मैं पूरी तरह ठीक हूं और यही कहना चाहूंगी कि सिर्फ आपका हौसला ही आपको इस बीमारी से लडऩे में मदद करता है।
सिर्फ 5 परसेंट थी बचने की उम्मीद
-सरला गुप्ता, (62) ब्लड कैंसर सर्वाइवर

'बेटी को पता न चले इसीलिए छोटे कर लिए बाल, वो बोली- मां बहुत सुंदर लग रही हो, मेरी आंखें भर आईं'
18 नवंबर 2014 को पता चला कि मुझे ब्लड कैंसर (एएमएल) है। उस वक्त मेरे मन में एक ही बात आई थी कि मुझे पूरी तरह से ठीक होना। जब फस्र्ट कीमो हुआ तो इंफेक्शन हो गया था, तब डॉक्टर ने कह दिया था ठीक होने की उम्मीद सिर्फ ५ परसेंट है। इंफेक्शन को खत्म करने के लिए तीन डॉक्टर की स्पेशल टीम ने काम किया और जान की जोखिम से बाहर लाए, लेकिन परेशानियां खत्म नहीं हुई। कीमो की वजह से हार्ट में दिक्कत होने लगी थी। मुंबई के डॉक्टर्स ने भी ट्रीटमेंट करने से इनकार कर दिया था। हार्ट की समस्या ठीक होने में २ महीने का समय लगा और फिर बोनमैरो ट्रांसप्लांट की बात कही। इसके लिए दिल्ली के डॉक्टर की टीम बुलाई गई। भाई से बोनमैरा मैच हुआ और ट्रांसप्लांट करवाया गया। मुझे 6 महीने तक घर के अंदर जीरो इंफेक्शन वाले रूम में रखा गया। बिना ग्लव्स और मॉस्क के किसी को मेरे कमरे में आने की इजाजत नहीं थी। वे दिन याद करके आज भी डर जाती हूं, लेकिन परिवार के साथ ने मुझे जिंदगी जीने का हौसला दिया और आज मैं पूरी तरह से ठीक हूं।
इलाज के लिए पति ने किया 15-15 घंटे काम

-ममता वर्मा (35), ब्रेस्ट कैंसर सर्वाइवर

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मुझे साल 2016 में पता चला था कि ब्रेस्ट कैंसर है और ऑपरेशन के बाद पूरा ब्रेस्ट निकालना पड़ेगा। मेरे पति हम्माली करते थे। जब पता चला कि बीमारी में बहुत खर्च होगा तो पति सुबह 9 बजे से रात 12 बजे तक काम किया करते थे। इतनी परेशानी के बाद भी वे कभी मायूस नहीं हुए और मुझे हौसला दिया। मेरे डॉक्टर और रिश्तेदारों ने भी आर्थिक सहायता की। पति की मेहनत और ताकत ने ही मुझे कैंसर से जंग जीतने की ताकत दी। इस बात को चार साल हो गए हैं। मैं आज पूरी तरह से ठीक हूं। मेरा मानना है कि खुद पर विश्वास हो तो आप मौत को भी हरा सकते हैं।
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