नगर निगम ने स्वच्छता अभियान के तहत कचरे से खाद बनाने का सिलसिला 5 साल पहले शुरू किया था, लेकिन शहर का पाटीदार परिवार यह काम 10 साल से कर रहा है। इनके घर से कभी गीला कचरा नहीं निकलता। सालभर में ये करीब डेढ़ टन खाद बनाते हैं, जो लोगों को बांटने के साथ ही खुद ही घर में उपयोग करते हैं। ये अपने घर की छत पर सब्जियां भी उगाते हैं।
पर्यावरण दिवस पर हम बात कर रहे हैं विष्णु व मधुबाला पाटीदार की। इन्होंने 350 वर्गफीट की छत पर सबसे पहले सब्जियां उगाना शुरू किया। पूरी छत पर मौसम अनुसार सालभर सब्जियां उगाई जाती हैं। हर सीजन में 6 से 8 तरह की सब्जियों की पैदावार करते हैं। खाद के लिए तीन पिट भी बना रखे हैं। सब्जियों और गीला कचरे की तीनों पिट में खाद बनाते हैं। विष्णु बताते हैं, आजकल हानिकारक तरीके से फल सब्जियां उगाई जाती हैं इसलिए हम घर पर आर्गेनिक तरीके से सब्जियां उगाते हैं उन्हीं सब्जियों का हम सेवन करते हैं। पड़ोसियों और रिश्तेदारों को भी हम सब्जियां उपलब्ध कराते हैं। इसी तरह कुछ खाद हम खुद रखते हैं वहीं कुछ दूसरों को देते हैं। स्वच्छता को हम पहले ही अपना चुके हैं। चूंकि मेरा बेकग्राउंड किसानी का रहा है ऐसे में मुझे ज्यादा दिक्कत नहीं आई। हम केवल सूखा कचरा ही गाड़ी में डालते हैं हमारे यहां गीला कचरा नहीं निकलता।
जानिए क्या हैं विश्व पर्यावरण दिवस का इतिहास
विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना 1972 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा ह्यूमन एनवायरनमेंट पर स्टॉकहोम सम्मेलन में की गई थी, जिसमें 119 देशों में हिस्सा लिया था. सभी ने एक धरती के सिद्धांत को मान्यता देते हुए हस्ताक्षर किए. इसके बाद 5 जून को सभी देशों में ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाया जाने लगा. भारत में 19 नवंबर 1986 से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू हुआ।