इंदौर

बेटी को सिंधु, सायना, मेरीकॉम जैसी बनाना है तो क्या खिलाए बचपन से

किशोर अवस्था में आयरन युक्त चीजें ज्यादा खिलाई जाए ऐसा कर के हम ब्लीडिंग और संक्रमण दोनो को नियंत्रण कर सकेंगे।

इंदौरSep 22, 2017 / 11:35 pm

अर्जुन रिछारिया

इंडियन कॉलेज ऑफ आब्सटेट्रिक्स एंड गायनोकॉलोजी (आईसीओजी) की चेयरपर्सन डॉ. माला अरोरा ने कहा
इंदौर. फेडरेशन ऑफ आब्सटेट्रिक्स एंड गायनोकॉलोजी सोसाइटी ऑफ इंडिया तथा इंडियन कॉलेज ऑफ आब्सटेट्रिक्स एंड गायनोकॉलोजी क्रिटिकल केयर इन आब्सटेट्रिक्स विषय पर शहर में दो दिनी नेशनल कॉन्फ्रेंस कराने जा रहा है। 23 और 24 सितम्बर को ब्रिलिएंट कन्वेंशन सेंटर में होने वाली इस कॉन्फ्रेंस में भाग लेने के लिए देश भर से 600 से अधिक डेलीगेट्स और एक्सपर्ट्स आएंगे। कान्फ्रेंस में हिस्सा लेने आई इंडियन कॉलेज ऑफ आब्सटेट्रिक्स एंड गायनोकॉलोजी (आईसीओजी) की चेयरपर्सन डॉ. माला अरोरा बताती है देश मे अभी भी लडक़े और लडक़ी की परवरिश के दौरान खान पान में बहुत अंतर रखा जाता है। यह एक मुख्य कारण है कि लड़कियां मां बनने से पूर्व एनिमिक होती है और ज्यादा ब्लीडिंग के कारण उनकी मृत्यु होती है। हमें चाहिए कि लड़कियों को बाल अवस्था से और खास तौर से किशोर अवस्था में आयरन युक्त चीजें ज्यादा खिलाई जाए ऐसा कर के हम ब्लीडिंग और संक्रमण दोनो को नियंत्रण कर सकेंगे। बीपी ज्यादातर उन महिलाओं का बढ़ता है जिनके जुड़वा बच्चे होते है या उनके परिवार में बीपी की हिस्ट्री होती है।
मलेशिया से आए डॉ. जे रविचंद्रन जो कि वहां के सरकारी इंस्टिट्यूशन से जुड़ हुए है बताते है कार्बोनोटॉक्सिन मौलीक्युल का इस्तेमाल कर के हम महिलाओं की प्रसव के दौरान होने वाली ब्लीडिंग को तीन घंटो तक रोक लेते है। इस दौरान काफी सारी क्रिटिकल एमरजेंसी को कंट्रोल कर लिया जाता है। ऐसी दवाओं की जरूरत भारत मे ज्यादा है क्योंकि यहां गांवों से शहर इलाज के लिए लाते हुए ज्यादातर महिलाओं की ज्यादा ब्लीडिंग के कारण मृत्यु हो जाती है। उत्तरी राज्यों में सडक़ और एम्बुलेंस व्यवस्था कमजोर है जिससे सही समय पर इलाज नही मिल पाता।
ऑर्गनाइजिंग चेयरपर्सन डॉ. आशा बक्शी ने बताया गवर्मेंट द्वारा तैयार की गई किताब एचडीयू का वितरण डेलीगेट्स को होगा जिसमें कुछ बेसिक मशीने अपने सेंटर पर रख कर छोटे शहरों के अस्पताल क्रिटिकल परिस्थितियों को संभाल ने की जानकारी दी गई है। मलेशिया में हर 10 लाख पर 23 महिलाओं की मृत्यु प्रसव के दौरान हो रही है और विश्व में ज्यादातर देश में यह आंकड़ा 50 से कम है, वहीं देश मे यह आंकड़ा 139 का है। देश के 4 राज्यों में यह आंकड़ा 100 से कम है जिनमें महाराष्ट्र, केरल, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और असम है। 2030 तक इस आंकड़े को 70 से कम करना यूनीसेफ क्या लक्ष्य है। मध्यप्रदेश में हर 10 लाख पर 200 महिलाओं की मृत्यु प्रसव के दौरान हो रही है। असम के आंकड़ा 300 के भी पार है।
जागरुकता रैली रविवार को

डॉ. रचना दुबे ने जानकारी दी आज भी देश के कई हिस्सों में महिला को प्रताडि़त किया जाता है। ऐसे लोगों के खिलाफ और जागरूकता के उद्देश्य से रविवार की सुबह 7 बजे मैराथन होगी। जो ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर से शुरू होगी।
 
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