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पीएमओ की ओर से जारी हुआ सलाह पत्र
बात तो सिलसिलेवार तरीके से शुरू करते हैं। पीएमओ ने एनएचएआई को पत्र लिखकर कहा कहा है कि मौजूदा समय वो सड़कों का निर्माण बंद कर दे। पत्र में कहा गया है कि सड़कों के निर्माण में किसी तरह की प्लानिंग नहीं हो रही है और सड़कों के बहुत ज्यादा विस्तार के कारण प्रोजेक्ट्स में रुकावटें पैदा हो गई हैं। वहीं सड़क निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण के लिए रुपया भी ज्यादा देना पड़ रहा है। यही कारण है कि सड़कों के निर्माण के लिए रुपयों की कमी से जूझना पड़ रहा है। प्राइवेट इंवेस्टर और कंस्ट्रक्शन कंपनियां नए प्रोजेक्ट्स को हाथ नहीं लगा रही हैं। वहीं पीएमओ ने एनएचएआई से अपनी संपत्तियों से रुपया कमाने को कहा है, ताकि इस समस्या से निपटा जा सके। जिसके लिए पीएमओ की ओर से उपाय सुझाए हैं। जिसमें टोल ऑपरेट ट्रांसफर मॉडल, जिसमें सबसे बड़ी बोली लगाने वालों को टोल रेवेन्यू जमा करने के लिए लंबे समय तक छूट देने की सलाह शामिल है।
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आखिर क्यों आई समस्या
जैसा कि सरकार ने बताया कि उन्हें जमीन अधिग्रहण के लिए ज्यादा रुपया देना पड़ रहा है। वास्तव में 2014 से 2018 वित्तीय वर्ष के बीच में सरकार की ओर से जमीन अधिग्रहण के मुआचजे को तीन गुना से ज्यादा कर दिया। अगर बात आंकड़ों की करें तो नया अधिग्रहण आने के बाद जब मोदी सरकार पहली बार 2014 में आई तो अधिग्रहण के लिए प्रति हेक्टेयर 92 लाख रुपया दिया जा रहा था। जिसके बाद 2015 में 135 लाख, 2016 में 236 लाख, 2017 में 238 लाख और 2018 में 308 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर दिए जाने लगे। अब आप जान सकते हैं कि किस तरह से जमीन अधिग्रहण के लिए सरकार की ओर से जमीन की कीमतों को आसमान पर पहुंचा दिया। अब जब देश की सड़कों के निर्माण के लिए जीमन की जरुरत है तो सरकार के पास रुपयों का संकट आकर खड़ा हो गया है।
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इस तरह से बढ़ा जमीन मुआवजे का रुपया
साल | मुआवजे की रकम ( प्रति हेक्टेयर लाख रुपयों में ) |
2014 | 92 |
2015 | 135 |
2016 | 236 |
2017 | 238 |
2018 | 308 |
लगातार बढ़ता गया कर्ज
वर्ष 2014 के आसपास सरकार सड़के बना रही थी, जो सिलसिला बादस्तूर अभी तक जारी रहा। उसी के साथ कंपनी पर कर्ज का बोझ भी बढ़ता चला गया। मौजूदा समय में कंपनी 1.80 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। जबकि 2014 में यह कर्ज महज 40 हजार करोड़ रुपए था। वहीं वित्त 2022-23 में यह कर्ज बढ़कर 3.3 लाख करोड़ रुपए हो सकता है। जानकारों की मानें तो सरकार की पॉलिसी की वजह से एनएचएआई पर इतना बड़ा बोझ बढ़ गया है। जिस तरह से बीएसएनएल और आईएलएंडएफएस के साथ हुआ कुछ ऐसा ही एनएचएआई के साथ भी हो रहा है। अगर सरकार की ओर से सख्त कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति और भी नाजुक हो सकती है।
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98 फीसदी तक सड़क निर्माण में आई कमी
अब जरा बात सड़क निर्माण की करते हैं। वित्त वर्ष 2017-18 के मुकाबले मौजूदा वित्तीय वर्ष 98 फीसदी सड़क निर्माण में आ चकी है। 2017-18 में 17055 किमी सड़कों का निर्माण हुआ था। जिसके बाद 2018.19 यह घटकर 5493 किलोमीटर रह गया। याली 68 फीसदी की कमी देखने को मिली। वहीं 2019-20 में सड़क निर्माण सिर्फ 500 किलोमीटर ही हुआ है। यानी पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले 98 फीसदी की कमी देखने को मिल रही है। यानी इस साल सिर्फ दो फीसदी की सड़कें बनेगीं।