बारकोडिंग से होगो कचरे का निपटारा
अब केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण समिति ने बायो मेडिकल कचरे की बारकोडिंग प्रणाली शुरू की है, जिससे माना जा रहा है कि जैविक कचरे के प्रबंधन की मानिटरिंग की जा सकेगी। पर्यावरणविद व जैविक कचरा प्रबंधन विशेषज्ञ व डॉ नीरज अग्रवाल ने बताया कि बायोमेडिकल कचरे के निपटान के लिए दिशानिर्देश तो हैं लेकिन इनके अनुपालन में कोताही पर किसी तरह की कड़ी कार्रवाई का प्रावधान नहीं है। उन्होंने बताया कि यदि कोई अस्पताल या संस्थान इन दिशानिर्देशों का अनुपालन नहीं करता, तो प्रदूषण नियंत्रण विभाग उनको सिर्फ नोटिस भेज सकता है। किसी तरह का जुर्माना नहीं लगा सकता, ऐसे में बारकोड प्रणाली का इम्पलीमेंटशन कितना कारगर परिणाम ला सकेगा कहा नहीं जा सकता।
बायोमेडिकल कचरा एक बड़ी चुनौती
डीपीसीसी के सूत्रों ने भी इस बात को स्वीकारते हुए कहा कि बायो मेडिकल कचरे के निपटान के दिशानिर्देशों का अनुपालन नहीं करने पर दिल्ली एनसीआर के कई अस्पतालों को नोटिस भेजा गया है। उनका बिजली पानी भी काटा गया है। लेकिन जुर्माना लगाने का अधिकार नहीं होने की वजह से इस दिशा में पुख्ता कार्रवाई नहीं हो पाती। वहीं लगभग 2 करोड़ की आबादी वाले दिल्ली शहर में मात्र तीन दर्जन लोग ही प्रदुषण संबंधित नियमों के अनुपालन और निगरानी के लिए जिम्मेदार हैं। बायोमेडिकल वेस्ट के अलावा, ई-वेस्ट वायु प्रदुषण, जल प्रदुषण से संबंधित नियम कानूनों को लागू करवाना और इनका देखरेख एक सबसे बड़ी चुनौती बन गया हैं।
3.3 लाख सलाना निकलता है जैविक कचरा
बायो मेडिकल कचरे में अस्पताल, नर्सिंग होम्स, क्लीनिक्स, पशु चिकित्सालय, लैबोरेटरी, पैथ लैब फार्मास्युटिकल्स प्लांट्स आदि से निकलने वाले मानव अंग, ब्लड, रक्त वाली रूई, सीरींज, यूरीनर और सर्जरी में इस्तेमाल होने वाली उपकरण आते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) के आंकडों के अनुसार, भारत में सालाना लगभग 3.3 लाख टन जैविक कचरा निकलता है।
50 फीसदी कचरे का ही हो पाता है निपटारा
फिलहाल अस्पतालों में प्रति बेड आधा से दो किलो तक बायोमेडिकल कचरा निकलता है। उनका कहना है कि राजधानी दिल्ली में अकेले प्रतिदिन 100 टन बायोमेडिकल कचरे उत्पन्न होता हैं। इसमें से लगभग 50 प्रतिशत ही वेस्ट मैनेजमेंट यूनिट्स में पहुंचता हैं। जानकारी और निगरानी के अभाव में 50 प्रतिशत जैविक कचरे को या तो सामान्य कचरे के साथ निपटान कर दिया जाता है या फिर उसे स्क्रैप में बेच दिया जाता है। बिना उचित ट्रीटमेंट के रिसाइकिल किए जाने की वजह से यह संक्रमण का कारण बनता है।