scriptरेरा से बचने के चक्कर में बिल्डर हो रहे दिवालिया | Builders getting Bankrupt in order to save themselves form RERA | Patrika News

रेरा से बचने के चक्कर में बिल्डर हो रहे दिवालिया

locationनई दिल्लीPublished: Aug 23, 2017 10:36:00 am

 रेरा लागू होने के बाद  कानून में किए गए सख्त प्रावधान और सजा से बचने के लिए डवलपर्स दिवालिया कानून का सहारा ले रहे हैं।

RERA

नई दिल्ली। रियल एस्टेट बिल (रेरा) लागू होने के बाद प्रॉपर्टी बाजार में बेहतरी की उम्मीद की जा रही थी लेकिन हो इसके बिल्कुल विपरीत रहा है। रेरा लागू होने के बाद प्रॉपर्टी बाजार में हालात और खराब हो गए हैं। ऐसा इसलिए कि रेरा कानून में किए गए सख्त प्रावधान और सजा से बचने के लिए डवलपर्स दिवालिया कानून का सहारा ले रहे हैं।


ऐसे में घर खरीदार के सामने संकट खड़ा हो गया है कि अब वो क्या करें क्योंकि नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के पास मामला पहुंचने पर वह रेरा या किसी दूसरे कोर्ट में उस डवलपर के पास शिकायत भी दर्ज नहीं कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील अजय कुमार ने पत्रिका को बताया कि एनसीएलटी के पास एक बार केस पहुंच जानेे के बाद 6 महीने की मोहलत डवलपर को मिल जाती है। इस बीच कंपनी को रीवाइव करने की योजना तैयार की जाती है। अगर, छह महीने में रास्ता नहीं निकलता है तो तीन माह की मोहलत औैर दी जाती है। इस तरह डवलपर को 9 महीने की राहत मिल जाएगी। दिवालिया कानून के मुताबिक अगर डवलपर दिवालिया होता भी है तो उसके आवंटित जमीन को रद्द नहीं किया जाएगा। इस अवधि के बीच में डवलपर के खिलाफ कोई नई शिकायत भी दर्ज नहीं कराई जा सकती है। ऐसे में रियल्टी की मौजूदा हालत में डवलपर्स के लिए कानून से बचने के लिए यह सबसे अच्छा रास्ता हो सकता है।


खरीदार के पास क्या है रास्ता

एक्सपर्ट्स का मानना है कि अब तक यह स्पष्ट नहीं था कि किसी बिल्डर पर इन्सोल्वेंसी प्रोसेस शुरू होने की स्थिति में होम बायर्स को फाइनेंशियल क्रेडिटर्स माना जाएगा लेकिन वित्त मंत्री अरुण जेटली के बायान के बाद यह साफ होगा कि दिवालिया होने पर घर खरीदार भी अपने पैसे के लिए क्लेम कर सकते हैं। इसके लिए कानून में फार्म एफ जोड़ा गया है जिसको भरकर एनसीएलटी की ओर से नियुक्त एंटरिम रिजॉल्युशन प्रोफेशनल को भेजना होगा।


सीमित अधिकार

रियल एस्टेट एक्सपर्ट प्रदीप मिश्रा ने बताया कि मौजूदा दिवालिया कानून, रियल एस्टेट सेक्टर के लिए बना हुआ नजर आता ही नहीं है। बायर्स के सहानुभूति के तौर पर अभी अनसिक्योर्ड क्रेडिटर्स के तौर पर फार्म एफ जोड़ा गया है। यानी, डवलपर दिवालिया भी होता है तो बैंक को पहले पैसा मिलेगा, बायर्स को नहीं।

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