मीडिया संस्थानों को भी जांच की सलाह मीडिया को भी खाद्य पदार्थों में मिलावट और संक्रमण तथा अन्य संबंधित खबरों को छापने से पहले तथ्यों की भलीभांति जांच करने की सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि एफएसएसएआई मीडिया प्रतिष्ठानों और एजेंसियों को लिखकर कहेगा कि खाद्य संरक्षा से संबंधित खबरों के प्रकाशन से पहले उनका सावधानी पूर्वक सत्यापन करने के लिए आंतरिक व्यवस्था तैयार की जाए। प्राधिकरण खाद्य संरक्षा की रिपोर्टिंग में तकनीकी पक्षों को लेकर क्षमता विकास के लिए मीडिया के साथ एक कार्यशाला का भी आयोजन करेगा।
प्लास्टिक के अंडे और चावल की वीडियो को बताया फर्जी अग्रवाल ने इस संदर्भ में सोशल मीडिया पर वायरल प्लास्टिक के अंडे और प्लास्टिक के चावल वाले वीडियो का जिक्र करते हुए कहा है कि ये वीडियो पूरी तरह से फर्जी हैं। साथ ही सोशल मीडिया पर दूध में मेलामाइन की उपस्थिति तथा एफएसएसएआई की ओर से दूध में इसे मिलाने की अनुमति का वीडियो भी फर्जी है। उन्होंने कहा कि देश में खाद्य पदार्थों में मेलामाइन मिलाना पूरी तरह प्रतिबंधित है और प्राधिकरण ने नियमों में कोई बदलाव नहीं किया है। हालांकि, एक प्रदूषक के तौर पर अनजाने में दूध में आ जाने वाले मेलामाइन की अत्यंत सीमित मात्रा अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप स्वीकार्य है। एफएसएसएआई ने मीडिया में आई उस खबर का भी जिक्र किया है जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मशविरे के हवाले से कहा गया था कि दूध और अन्य डेयरी उत्पादों में मिलावट के कारण वर्ष 2025 तक देश की 87 फीसदी आबादी कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाएगी। प्राधिकरण ने स्पष्ट किया कि डब्ल्यूएचओ ने कभी ऐसा कोई मशविरा जारी नहीं किया है।