कर्ज के जाल में फंसी IL&FS
सोमवार को ही पता चलता है कि बीते एक माह में तीसरी बार IL&FS कर्ज पर ब्याज की किश्त चुकाने में असमर्थ रही है। अब IL&FS की परेशानी ये है कि आगले 6 माह में कंपनी को 3600 करोड़ रुपए से भी अधिक चुकाने हैं। कंपनी के लिए एक और परेशानी ये भी है कि उसने जिन्हें कर्ज दिया है, वो इसे लौटा नहीं पा रहे हैं। नतीजतन कंपनी स्मॉल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (सिडबी) के 1000 करोड़ रुपए के कर्ज की किश्त को नहीं चुका पार्इ है। कर्इ तरह के प्रोजेक्ट्स की बढ़ती लागत और आधे-अधूरे प्रोजेक्ट्स ने कंपनी की हालत को और खस्ता कर दिया है। इसके चलते कंपनी का 17 हजार करोड़ रुपए सरकार पर बकाया है, जिसे भी वो वसूल नहीं पा रही है। पिछले दिनों की खबर आर्इ थी की सिडबी अपना कर्ज वसूलने के लिए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया है।
माल्या और मोदी से भी बड़ा है पूरा मामला
प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने भी IL&FS संकट को लेकर चिंता जाहिर किया है। कांग्रेस ने कहा है कि पिछले वित्त वर्ष यानी 2017-18 में IL&FS का घाटा 2395 करोड़ रुपए था और पिछले 36 माह में कंपनी के कर्ज में 44 फीसदी का इजाफा हुआ है। ऐसे में यदि कंपनी दिवालिया होती है तो वित्तीय बाजार में भूचाल आ सकता है। अभी तक IL&FS पर करीब 91 हजार करोड़ रुपए का कर्ज का बोझ है। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये विजय माल्या या पीएनबी घोटोल से कितना बड़ा मामला है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी नोमुरा की एक रिसर्च रिपोर्ट से पता चलता है कि IL&FS पर छोटी अवधि के लिए करीब 13,559 करोड़ रुपए और लंबी अवधि के लिए 65,293 करोड़ रुपए का कर्ज है। जिसमें से करीब 60 हजार करोड़ रुपए का कर्ज सड़क, बिजली और पानी से जुड़े परियोजनाओं से संबंधित है। कंपनी के फाइनेंशियल सर्विसेज पर अकेले 17 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है।
क्यों आया कंपनी पर वित्तयी संकट
रेटिंग एजेंसियों की दुलारी इस कंपनी को तब लोगों ने जाना जब साल 1996-97 के दौरान कंपनी ने दिल्ली-नोएडा टोल ब्रिज को बनाया था। दरअसल कंपनी के इतने वित्तीय संकट में फंसने को सबसे बड़ा कारण यह है कि कंपनी ने कम अवधि के लिए बहुत अधिक कर्ज तो ले लिया लेकिन उस हिसाब से कंपनी की कमार्इ नहीं हो सकी। वहीं दूसरी तरफ देश के सभी बड़े बैंकों पर गैर-निष्पादित अस्तियों (एनपीए) के बढ़ते बोझ को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने नियमों को और कठोर कर दिया। रिजर्व बैंक ने बैंकों से कहा कि यदि कर्ज को लेकर जोखिम अधिक है तो इसे रोलओवर न किया जाए। इसका मतलब यह हुआ कि कर्ज की अवधि को और अधिक न बढ़ाया जाए। हालांकि IL&FS ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा है कि उसे कर्इ परियोजनाओं से लंबी अवधि में कमार्इ होगी। उसे कर्ज की समस्या को पूरी तरह से खत्म करने में दो से तीन साल तक लग सकते हैं।