Rail Budget 2019: देश के सबसे बड़े नेटवर्क ( रेलवे ) का होगा निजीकरण
2018 से 2030 तक रेलवे में 50 लाख करोड़ का होगा निवेश
‘पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप’ पर मोदी सरकार दे रही है जोर
‘निजीकरण’ से क्या बदलेगी रेलवे की तस्वीर?, 50 लाख करोड़ के निवेश के लिए कितना कारगर होगा 3P फार्मूला
नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को संसद में मोदी सरकार 2.0 का पहला आम बजट ( budget ) पेश किया। इसके साथ ही 2019-20 का रेल बजट ( rail budget 2019 ) भी पेश किया। इस बजट की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि देश के सबसे बड़े नेटवर्क भारतीय रेलवे ( Indian Railways ) के निजीकरण की घोषणा की गई। वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि रेलवे के ढांचे को बदलने के लिए इसमें ‘3P’ ( PPP ) यानी ‘पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप’ मॉडल को लागू किया जाएगा।
लोकसभा में बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि भारतीय रेलवे का तेजी से विकास करने के लिए ‘3P’ मॉडल को लागू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि वर्ष 2018 से 2030 तक रेलवे में 50 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा। रेलवे के अलावा मेट्रो और रैपिड रेल में ‘3P’ फॉर्मूले को लागू किया जाएगा।
क्या इसकी बदहाली सच में दूर हो जाएगी? सवाल यह भी है कि सरकार जिस मकसद से रेलवे का निजीकरण करने जा रही है उस मकसद में कामयाब हो पाएगी? रेलवे के निजीकरण से आम आदमी पर क्या हो सकता है असर?
करीब दो करोड़ लोग देश के सबसे बड़े नेटवर्क में सफर करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, करीब तीन चौथाई आबादी भारतीय रेल से यात्रा करती हैं। ऐसे में अगर उसका निजीकरण होता है, तो आम जनता पर उसका क्या असर पड़ेगा?
निजीकरण होने से प्राइवेट कंपनियां अपने हिसाब से टिकट और व्यवस्थाओं को निर्धारित करेंगी। लिहाजा, इसका विपरीत असर रेल यात्रियों पर पड़ सकता है। रेलवे का बेड़ापार लगाने के लिए प्राइवेट कंपनियां कई बड़े कदम उठा सकती हैं, जिसका सीधा असर आम पब्लिक पर पड़ सकता है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि रेलवे के निजीकरण से आम यात्री पर क्या असर पड़ेगा, सरकार के लिए यह बड़ी चुनौती रहेगी? निजीकरण पर मोदी सरकार दे रही है जोर मोदी सरकार लगातार कई सेक्टरों का निजीकरण करने में लगी है। अभी हाल ही में एयर इंडिया का निजीकरण करने का ऐलान किया गया है।
दरअसल, जो भी सेक्टर घाटे में जा रहे हैं या जरूरत के अनुसार सरकार उसमें सुविधा मुहैया नहीं करा पा रही है उसका निजीकरण किया जा रहा है। सरकार का मानना है कि निजीकरण करने से जो भी सेक्टर घाटे में जा रहा है, उसका फिर से उत्थान हो सकेगा। गौरतलब है कि देश में कई सड़क परियोजनाओं को 3P मॉडल के तहत ही पूरा किया गया है।
देश के कई हाईवे इसी मॉडल पर बने हैं। यह एक ऐसा करार है, जिसके द्वारा किसी जन सेवा या बुनियादी ढांचे के विकास के लिए धन की व्यवस्था की जाती है। इसमें सरकारी और निजी संस्थान मिलकर अपने अनुभवों का प्रयोग करते हैं और पहले से निर्धारित लक्ष्य पर काम करते हैं और उसे हासिल करते हैं।
क्यों पड़ती है PPP की जरूरत? सरकार को 3P की जरूरत इसलिए पड़ती है, जब उसके पास अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त राशि न हो। उस स्थिति में अपनी घोषणाओं को पूरा करने के लिए सरकार निजी कंपनियों के साथ एग्रीमेंट करती है और योजनाओं को पूरा करती है। सार्वजनिक भागीदार का प्रतिनिधित्व सरकार द्वारा स्थानीय, राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर किया जाता है।
3P के फायदे पीपीपी मॉडल अपनाने से परियोजनाएं सही लागत पर और समय से पूरी हो जाती हैं। इस मॉडल से काम समय से पूरा होने के कारण निर्धारित परियोजनाओं से होने वाली आय भी समय से शुरू हो जाती है, जिससे सरकार की आय में भी बढ़ोतरी होने लगती है।
परियोजनाओं को पूरा करने में श्रम और पूंजी संसाधन की प्रोडक्टिविटी बढ़ाकर अर्थव्यवस्था की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि पीपीपी मॉडल के तहत किए गए काम की क्वालिटी सरकारी काम के मुकाबले अच्छी होती है और काम अपने निर्धारित योजना के अनुसार होता है।
अब देखना यह है कि मोदी सरकार के इस कदम से सच में रेलवे का उत्थान होता है या फिर उसकी स्थिति जस की तस रहती है।