केन्द्र सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत अगर कोई सरकार के पास रोजगार मांगने जाएगा तो सरकार उसे 100 दिन का रोजगार देगी। अगर सरकार रोजगार मुहैया नहीं करा पाती तो सरकार मजदूर को बेरोजगारी भत्ता देती है।इतना ही नहीं सरकार 100 दिन के रोजगार की गारंटी के साथ सामाजिक सुरक्षा देने का भी वादा करती है। लेकिन रिजर्व बैंक के आंकड़े सरकार की दावों और वादों की पोल खोलते नजर आ रहे है।आरबीआई ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात का दावा किया है की देश का कोई भी राज्य इस केन्द्रीय योजना के मुताबिक पूरे 100 दिन का रोजगार नहीं दे पाई है।
आरबीआई के रिपोर्ट के अनुसार मनरेगा के तहत देश भर में औसतन 45.2 दिन का ही रोजगार दिया गया है। अगर गरीबों को सबसे अधिक दिन का रोजगार जिस राज्य ने दिया है तो वो है त्रिपुरा। लेकिन त्रिपुरा भी 100 दिन के रोजगार के वादे को पूरा नहीं कर पाया है। त्रिपुरा ने गरीबों को तकरीबन 75 दिन का रोजगार दिया है। तो मणिपुर में एक साल के दौरान महज 20 दिन का रोजगार दिया जा सका। केन्द्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक जहां वित्त वर्ष 2017-18 में औसतन महज 45.77 दिनों का रोजगार दिया गया। वहीं 2016-17 में 46 दिन और 2015-16 में सिर्फ औसतन 40.17 दिन का रोजगार दिया गया। सरकार ने गरीबों को रोजगार देने के वादे तो खूब किए लेकिन वादों को पूरा करने में सफल नहीं हो पाई। सरकार इन तीन वित्त वर्ष में किसी भी वित्त वर्ष में गरीबों को 100 दिन का रोजगार नहीं दे पाई है।
पीएम मोदी की सरकार की नाकामी यहीं तक नहीं है केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2013-14 में मनरेगा के तहत रोजगार पाने वाले परिवारों की संख्या 46,59,347 थी।जो साल 2016-17 में घटकर 39,91,169 रह गई। मोदी सरकार गरीबों को 100 दिन का रोजगार देने में तो नाकाम रही ही है। साथ ही गरीबों को रोजगार रोजगार मुहैया करा पाने में भी नाकाम साबित हुई है। आपको बता दे एक समय में मनरेगा इतना सफल रहा था की विश्व बैंक ने मनरेगा को 2015 में दुनिया के सबसे बड़े पब्लिक वर्क प्रोग्राम की संज्ञा दी थी।