Published: Jul 06, 2018 02:26:31 pm
Saurabh Sharma
क्लेन्स्टा के शैंपू और बॉडी बाथ डस्ट, मैल और स्किन और सर का ऑयल हटाने का भी काम करता है।
इस शैंपू आैर साबुन का इस्तेमाल करते हैं सेना के जवान, नहीं पड़ती पानी की जरुरत
नर्इ दिल्ली। जब भी शैंपू आैर साबुन का इस्तेमाल करते हैं तो खूब पानी का इस्तेमाल करते हैं। खासकर तब जब शैंपू का यूज करते हैं। लेेकिन देश के सेना के जवानों के लिए एक खास तरीके का शैंपू आैर साबुन बनाया जाता है। जिसे वो एेसे स्थानों में इस्तेमाल करते हैं जहां पानी नहीं होता है। इसका मतलब ये है कि इन साबुन आैर शैंपू को इस्तेमाल करते वक्त पानी की जरुरत नहीं होती है। आइए आपको भी बताते हैं इस शैंपू आैर साबुन के बारे में…
दुर्गम इलाकों में तैनात जवानों को होती है परेशानी
भारतीय जवान जमा देने वाली सर्दी में बॉर्डर पर तैनात रहते हैं। ऐसे एरिया में रोज नहाना लगभग असंभव जैसा है। जमा देने वाली जगहों पर अपने बेस कैंप से दूर जवान कई दिनों तक बिना नहाए और सफाई किए रहते हैं। ऐसे मामलों में कई बार स्किन प्रॉब्लम उन्हें ज्यादा होती हैं। ऐसे मुश्किल एरिया में तैनात जवानों के पास पानी नहीं होता और वह नहा भी नहीं पाते। वह जब बेस कैंप वापस लौटते हैं तो अपने को साफ कर पाते हैं।
इस तरह का है शैंपू आैर साबुन
कारगिल, सियाचिन और द्रास जैसी जगहों पर तैनात जवानों के लिए अब खास तरह के शैंपू आैर साबुन तैयार किया जा रहा है। इससे वो पानी के बिना नहाए भी अपनी सफाई कर सकें। यह एक तरह का वाटरलेस शैंपू और बॉडी बाथ है। जो क्लेन्स्टा इंटरनेशनल कंपनी बनाती है। जवानों को शैपू और बॉडी बाथ लगाकर साफ तौलिये से पोछना होता है। इसमें पानी की जरूरत नहीं पड़ती। ये प्रक्रिया नहाने के बराबर है। क्लेन्स्टा के शैंपू और बॉडी बाथ डस्ट, मैल और स्किन और सर का ऑयल हटाने का भी काम करता है। कंपनी के अनुसार क्लेन्स्टा के 100 मिलीलीटर शैंपू की बोतल 300 लीटर पानी बचाती है।
IIT दिल्ली में हुई शुरूआत
क्लेन्स्टा इंटरनेशनल के फाउंडर पुनीत गुप्ता हैं। जवानों की इस परेशानी ने गुप्ता को क्लेन्स्टा इंटरनेशनल शुरू करने की प्रेरणा दी। क्लेन्स्टा इंटरनेशनल की शुरूआत आईआईटी दिल्ली में साल 2016 में हुई। अभी कंपनी का रिसर्च सेंटर वहीं है। वह ऐसे प्रोडक्ट बना रहे हैं जिनका इस्तेमाल बिना पीनी के भी किया जा सकता है। पुनीत गुप्ता का स्टार्टअप क्लेन्स्टा इंटरनेशनल का फोकस ऐसे ही रोजाना की प्रॉब्लम के सॉल्युशंस पर है। उन्होंने साल 2017 में सरकार और आर्मी को सप्लाई करना शुरू किया है।
नासा से भी हो रही है बात
कंपनी अमेरिका, डच और स्पेन की इडंस्ट्री और नासा से अपने प्रोडक्ट को लेकर बातचीत कर रही है। वेबसाइट के मुताबिक बायोटेक प्रोडक्ट बनाने में अहम चुनौती यही है कि कॉस्मटिक प्रोडक्ट को लेकर हर एक देश के अपने नियम हैं, इसलिए प्रोडक्ट के रॉ मैटेरियल का खास ध्यान देना पड़ता है। ये सभी ग्लोबल स्टैंडर्ड के मुताबिक होने चाहिए। अब वह यह प्रोडक्ट कन्ज्यूमर, हॉस्पिटल और हेल्थकेयर सेक्टर को देखते हुए भी डिजाइन कर रहे हैं।