बजट सत्र में राहुल गांधी को बुलाने पर सत्ता पक्ष ने विरोध किया। ऐसे में क्या चुनौती होती है?
देखिए, सदन सबका है। प्रतिपक्ष आलोचना-समालोचना करता है और कुछ सुझाव भी देता है। सत्ता पक्ष के लोग सरकार और जनता की भावना को रखते हैं। हमारे यहां विशेषता रही है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनी रहे। सबको बात कहने का अधिकार है। उन्होंने (राहुल) अपनी बात कही, किसी को उनकी (भाजपा) बात अच्छी नहीं लगी तो प्रतिवाद किया। सदन में कोई टोकाटोकी नहीं होनी चाहिए। कोशिश करता हूं कि व्यवस्था बनी रहे।
नारेबाजी-प्ले कार्ड से विरोध का तरीका कितना सही है?
प्ले कार्ड दिखाना, नारेबाजी संसद की गरिमा के अनुकूल नहीं है। मैंने औपचारिक-अनौपचारिक वार्ताओं में सभी को अवसर देने का प्रयास किया है। सदन सर्वोच्च है और 130 करोड़ जनता की अभिव्यक्ति का मंदिर है। सांसद अपनी बात कहेंगे तो सरकार को लोगों की समस्याओं की जानकारी मिलेगी और वह भी समाधान के लिए प्रयास करेगी।
नए संसद भवन को लेकर विपक्ष ने विरोध भी किया है…
नया संसद भवन समय की जरूरत है। मौजूदा भवन को बने 100 साल हो चुके हैं। हालांकि यह आज भी हर दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। भविष्य और तकनीक को देखते हुए नए भवन की जरूरत है। सदन में सांसदों के बैठने में समस्या आती है। हम चाहते हैं कि पेपरलेस, ग्रीन बिल्डिंग बनना चाहिए। नया भवन अक्टूबर 2022 में निर्मित हो जाएगा।
स्पीकर की भूमिका में आपको कैसा लगता है?
लोकसभा अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभाना चुनौतीपूर्ण काम है। पीएम नरेंद्र मोदी समेत सभी दलों के नेताओं और सांसदों का सहयोग मिला। हमने कोशिश की कि लोकतंत्र की इस सर्वोच्च संस्था का सम्मान बढ़े। पूर्ववती अध्यक्षों ने भी इसके सम्मान को बढ़ाने की कोशिश की है। हम लोकतांत्रिक व संवैधानिक सिद्धांतों-मूल्य को और मजबूत करें, जिसके लिए चर्चा, संवाद और बहस हो। सहमति-असहमति लोकतंत्र की खासियत है। कोशिश की गई कि अधिकतम चर्चा और संवाद हो। मंथन से जो चीजें निकल कर आती हंै, वो देश के लिए कल्याणकारी होती हैं। मेरे लिए यह क्षण बहुत अच्छे रहे हैं।
भारत जैसे देश के सभी राज्यों और संसदीय क्षेत्रों में सदन में संतुलन बनाना कितना मुश्किल होता है?
यह बात सही है कि अलग-अलग राजनीतिक दलों और अलग-अलग विचारधाराओं के सांसद संसद में आते हैं। कोई राष्ट्रीय दल से होता है तो कोई क्षेत्रीय दल से और कोई निर्दलीय। भारत की विशेषता यही है कि सारी विविधताओं में एकता है। भारत में धर्म, भाषा, सांस्कृतिक, बोलचाल पहनावे की विविधता है। इसके बावजूद हम सबकी रगों में जीवंत लोकतंत्र है। संसद में 42 से अधिक भाषाओं में बोलने की सुविधा सांसदों को दे रखी है।
सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष के नेताओं से रिश्ते मधुर रहे हैं। तनावपूर्ण माहौल के बावजूद मुस्कुराहट कैसे संभव बनाते हैं?
तनाव किस बात का, तनाव का सवाल ही नहीं। सदन तो तनाव मुक्त है। यह तो लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने के लिए संवैधानिक दायित्वों को निभाने का मंदिर है। मंदिर में हर आदमी खुशी से अच्छा महसूस करे और अच्छे वातावरण में चर्चा और संवाद होना चाहिए। मुझे सभी सांसदों का सहयोग मिलने से कभी सदन चलाने में परेशानी नहीं हुई।
पहली बार चुनकर आए सांसदों को परंपराओं और नियमों की जानकारी देने के लिए आपके प्रयास क्या रहे?
यह सही है कि बड़ी संख्या में सांसद पहली बार चुनकर सदन में आए हैं। इनमें से कई ऐसे भी हैं, जो विधायक, जिला प्रमुख, नगर निगम-पालिकाओं के अध्यक्ष, पंचायत समितियों में प्रधान आदि पदों पर रहे हैं। हमने लोकसभा के माध्यम से सांसदों को प्रशिक्षण दिलवाया। उसकी खासियत यह रही कि ज्यादा से ज्यादा नए सांसदों ने सक्रिय भागीदारी निभाई।
दो साल में सबसे मुश्किल पल कौनसा रहा?
मुझे लगता नहीं है कि कोई पल मुश्किल रहा। मुझे सभी दलों का सहयोग हमेशा मिला। इसलिए ऐसी स्थिति नहीं बनी।
लोकसभा अध्यक्ष के रूप में क्या चुनौती रहती है?
16वीं लोकसभा तक जो अध्यक्ष रहे, मैंने उन्हीं का अनुसरण करते हुए कोशिश की है कि नए परिवर्तन के साथ इसे आगे बढ़ाया जाए।
आपको भाजपा के बूथ मैनेजमेंट का मास्टर कहा जाता रहा है। क्या इसका फायदा सदन चलाने में भी मिला है?
निश्चित रूप से राजनीति में लोगों से मिलने-जुलने और उनकी समस्याओं के समाधान के पुराने अनुभव का हर जगह लाभ मिलता है। सदन में भी इसका लाभ मिला है।
सबसे अच्छा अभिनव प्रयोग कौन-सा लगा और क्यों?
शून्यकाल में अधिक से अधिक सांसदों को बोलने का मौका देना अच्छा लगा। शून्यकाल में सांसद अपने क्षेत्र की समस्याओं को सरकार तक पहुंचा सकता है। क्षेत्रवासियों को भी यह पता चलता है कि उसके सांसद ने कौन-सी समस्याओं को उठाया है। सरकार भी इस पर एक्शन लेती है। पांच सत्रों में शून्यकाल में रेकॉर्ड 3389 मामले उठाने का मौका सांसदों को दिया गया।