सरकारी अस्पताल डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी हॉस्पिटल में दुकानों का आवंटन १८ अप्रैल २०१६ में हुआ हैं और दुकानदारों का खेल शुरू हो गया। काम्पलेक्स में दुकान खरीदने वाले दुकानदार सरकारी संपत्ति को बेचकर ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते थे इसलिए ठीक ३ साल पूरा होते ही नामांतरण कराने के लिए रोगी कल्याण समिति से अनुशंसा कराके एसडीएम के पास भेजी थी जो रद्द कर दी गई है।
क्या है पूरा मसला
सरकारी अस्पताल में व्यवसायिक काम्पलेक्स बनाया गया था। इस काम्पलेक्स में करीब ३४ दुकानें है। इन दुकानों की नीलामी हुई थी और यह दुकान १३-१३ लाख रुपए में नीलाम हुई थी।
-यह की गई थी गड़बड़ी
इस मामले में सबसे बड़ी गड़बड़ी इसी बात से उजागर हुई कि सभी दुकानें १३-१३ लाख रुपए में नीलाम हुई। नीलामी में एक जैसी कीमत कैसे दुकानें नीलम हो सकती है।
– दूसरी गड़बड़ी यह है कि सरकारी अस्पताल में बने व्यवसायिक काम्पलेक्स पर मालिकाना अधिकार शासन का है। शासन की संपत्ति को बेचा नहीं जा सकता।
– यह था पूरा खेल
सरकारी अस्पताल में जिन लोगों ने दुकानें खरीदी है इसमें अधिकांश ने तो दुकानें बाद में ज्यादा कीमत पर बेचने के लिए ही खरीदी थी। खरीदने वाला दुकानदार किसी अन्य को बेचकर अलग हो जाता और बाद में नुकसान खरीददार को होता। इसका सबसे बड़ा उदाहरण शिक्षक सदन है। इसमें यही खेल हुआ था। दुकान बनाकर नेताओं ने किसी ओर बेच दी थी बाद में यह दुकानें टूट गई। जिसने यह दुकानें खरीदी उसे नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि यह बात अलग है कि इसमें न बनाने वाला सामने आया न बनवाने वाला सामने आया।
– इन लोगों ने खरीदी थी दुकानें
अमिताभ पिता रामेश्वर प्रताप ओझा, रोहित पिता भारत सिंह भदौरिया, विनोद पिता जर्नादन सिंह, जगदीश पिता कुंजीलाल मालवीय, अंकित पिता घासीराम मालवीय, नीलेश पिता इंद्रचंद्र जैन, ज्योति पति भारत सिंह वर्मा, जितेंद्र पिता रमेश प्रसाद सिहोते, निशांत उप्पल, मनोज पिता रमेश कुमार राय, श्रीकांत पिता रामेश्प्रसाद सैनी, हरविंद्र पिता प्रकाश सिंह बंजारा, अक्षत पिता कैलाशचंद्र अग्रवाल, मनोज पिता इमरतलाल पटेल, रिचा पति विनोद तिवारी, आरके अग्रवाल पिता एनआर अग्रवाल, शुभम पिता अरुण शर्मा, महेंद्र पिता चरणदास शर्मा, प्रीति राजू चौरे, सोमेश पिता मनोहर चौधरी, जितेंद्र पिता वीरेंद्र जैन, नीति पति अनुराग जैन, राहुल पे्रमलाल सोनकर, अंकित आनंद गंगवानी, प्रीति पति रजत मिश्रा, रवीना पति विनोद चौहान, साक्षी पति रवि जैसवानी, शिल्पा पति चेतन जैसवानी।
दुकानों के नामांतरण नहीं होना चाहिए यह आपत्ति लगाई थी। इस मामले में लोकायुक्त की जांच भी चल रही है।
अशोक जैन, कांग्रेस प्रवक्ता
नामांतरण संभव नहीं है। अस्पताल परिसर की जो दुकान है वह दुकानदार की स्वयं की संपत्ति नहीं है जो वह बेच सके या किसी ओर दे दे। यदि ऐसा कोई करता है दुकान राजसात की जाएगी।
हरेंद्र नारायण, एसडीएम इटारसी