रोज रात 9 से 10 बजे के बीच केवल जरूरतमदों को खाना खिलाते हैं। इस काम से हमें सेवा और संतुष्टि मिलती है। वे 2016 से यह काम कर रहे हैं। कोरोना काल में भी यह सेवा कार्य जारी रखा था। उस समय होटलें और शादियां बंद होने से अपने जेब के खर्च से खाना बनाकर इनको खिलाते थे। खाना में रोटी- सब्जी, या दाल- चावल और सब्जी खिलाते हैं। इसके लिए पत्तल- दोना खरीदने से लेकर बड़े बर्तनों में खाना लेकर ऑटो से स्टेशन पहुंचने का खर्च हम अपनी जेब खर्च से करते हैं।
सार्वजनिक जगहों पर जाकर इस तरह खिलाते हैं खाना
शादियों- होटलों में बचा खाना भी जुटाते हैंहर्ष ने बताया कि रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर रात में बैठे भूखे गरीबों को कई बार स्वादिष्ट भोजन मिल जाता है। इसके लिए हम दिन में विवाह स्थल, मैरिज गार्डन संचालकों और होटलों से संपर्क कर उनके यहां बचा खाने की व्यवस्था कर लेते हैं। इसमें कई तरह की सब्जियां, खीर, पुड़ी, मिठाइयां जो भी मिलती हैं, उसे हम ऑटो में लेकर यहां आकर बांटते हैं। जब कोई आयोजन नहीं होता, तो हम सभी दोस्त मिलकर खिचड़ी- दाल बनाकर लाते हैं।
शादियों- होटलों में बचा खाना भी जुटाते हैंहर्ष ने बताया कि रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर रात में बैठे भूखे गरीबों को कई बार स्वादिष्ट भोजन मिल जाता है। इसके लिए हम दिन में विवाह स्थल, मैरिज गार्डन संचालकों और होटलों से संपर्क कर उनके यहां बचा खाने की व्यवस्था कर लेते हैं। इसमें कई तरह की सब्जियां, खीर, पुड़ी, मिठाइयां जो भी मिलती हैं, उसे हम ऑटो में लेकर यहां आकर बांटते हैं। जब कोई आयोजन नहीं होता, तो हम सभी दोस्त मिलकर खिचड़ी- दाल बनाकर लाते हैं।
ठंड में बांटते गर्म कपड़े, बारिश में छाते युवाओं ने बताया वे खाना बांटते के साथ मौसम के हिसाब से जरूरतमंदों को अन्य चीजें भी देते हैं। जैसे बारिश में छाते, जूते, तो ठंड में गर्म कपड़े, कंबल आदि बांटते हैं। हम किसी से आर्थिक मदद नहीं मांगते हैं। कोई देना चाहता है, तो हम उन्हें खाद्य सामग्री मांग लेते हैं, ताकि गरीबों का पेट भर सकें।