हर ग्राम पंचायत के पास छोटी घास की जमीन होती है। दरअसल यह जमीन का उपयोग पहले मवेशियों के चरने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इसके अलावा पंचायत में यदि कोई सरकारी योजना के तहत भवन या कोई निर्माण होना होता था तो इस जमीन का उपयोग किया जाता था।
छोटी घास और बड़ा झाड़ की जमीन पर कब्जा जमाए बैठे लोग एक-दो साल के अंदर मामूली जुर्माना भर देते हैं। इस जुर्माने को भरने के बाद कब्जाधारी अपने आपको सरकारी जमीन का मालिक समझने लगते हैं। जबकि जुर्माना जमा करने वाली रसीद की आखिरी लाइन में ही लिखा होता है कि अर्थदंड अधिरोपित किया जाकर अतिक्रमण की गई भूमि से बेदखल किया जाता है।
कब्जाधारी ये हैं शामिल
– कृष्णावतार पिता मोतीलाल कुर्मी सोमलवाड़ा का ०.२१० मतलब ०.५१८ डिसमिल पर कब्जा है।
– बैजनाथ पिता गब्बूलाल सोमलवाड़ा का ०.९७० मतलब २ एकड़ ३९ डिसमिल पर कब्जा है।
– रमेश पिता बाबूलाल कुर्मी सोमलवाड़ा का ०.४०५ मतलब १ एकड़ पर कब्जा है।
– राधेलाल पिता रामकेश कुर्मी सोमलवाड़ा का ०.५२६ मतलब १ एकड़ २९ डिसमिल पर कब्जा है।
– अशोक पिता रामदास कहार सोनतलाई का १.८२३ मतलब ४ एकड़ ५० डिसमिल पर कब्जा है।
– सुखराम पिता रामदास कहार सोनतलाई का १.८२३ मतलब ४ एकड़ ५० डिसमिल पर कब्जा है।
– चिरोंजीलाल पिता रामप्रसाद कीर मरोड़ा का ९.१८६ मतलब २२ एकड़ ६९ डिसमिल पर कब्जा है।
– राधेश्याम पिता रामरतन मरोड़ा का ९.१८६ मतलब २२ एकड़ ६९ डिसमिल पर कब्जा है।
तहसीलदार तृप्ति पटैरिया से सीधी बात-
सवाल- पंचायतों में कौन सी जमीन को सरकारी माना जाता है ?
– पंचायतों में छोटी घास (चरनोइ) और बड़ा झाड़ की जो जमीन होती है वह सरकारी जमीन होती है।
सवाल- ऐसी जमीन पर कब्जाधारियों के लिए क्या प्रावधान है?
जवाब- जहां भी सरकारी जमीन पर कब्जा है उन अर्थदंड लिया जाता है जो उन्हें हटाया जाता है।
सवाल- क्या अर्थदंड देने से जमीन पर अधिपत्य मिल जाता है ?
जवाब- अर्थदंड का मतलब कतई अधिपत्य नहीं होता है। इन्हें कभी भी बेदखल किया जा सकता है।
तृप्ति पटैरिया, तहसीलदार इटारसी